महाराष्ट्र में 18 दिन तक चले उठा-पटक के बाद आखिरकार राष्ट्रपति शासन लग गया।मोदी कैबिनेट के फैसले पर राष्ट्रपति कोविंद ने हस्ताक्षर कर मंजूरी दी।
महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर बीजेपी थी जिसका शिवसेना के साथ गठबंधन टूट गया। गठबंधन टूटने की वजह मुख्यमंत्री की कुर्सी थी। शिवसेना चाहती थी की ढाई साल के लिए उनका मुख्यमंत्री बने परन्तु बीजेपी इस 50-50 के फैसले पर सहमत नहीं हो पाई।
राजपाल ने सर्वप्रथम बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया परन्तु संख्याबल न होने के कारण बीजेपी ने असमर्थता जताई। फिर राज्यपाल महोदय ने दूसरा ऑफर शिवसेना को २४ घंटे के अंदर दावा साबित करने के लिए दिया।लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के लेटलतीफी फैसले के कारण शिवसेना ने दो दिन का समय माँगा किन्तु राज्यपाल महोदय ने समय देने के बजाय शिवसेना का दावा ख़ारिज कर एनसीपी को सरकार बनाने का मौका दिया।
एनसीपी की शर्त थी की वो 50-50 फॉर्मूले पर सरकार बनाएगी। साथ के साथ कांग्रेस ने भी अपनी अजीबोगरीब शर्त रखी की उन्हें 4 विधायक पर एक मंत्री पद इसके साथ ही स्पीकर पद कांग्रेस पार्टी का होना चाहिए और ठाकरे परिवार से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहिए।
इन उटपटांग मांगो की जद्दोजहद चल ही रही थी की महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग गया।