महान गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हो गया। पहली बार सुर्खियों में डॉक्टर सिंह तब आए जब वह भीख मांगते हुए देखे गए 90 के दशक में एक समय ऐसा आया जब सारे मीडिया में यह न्यूज़ छा गया था इतने बड़े गणितज्ञ भीख मांगते हुए देखे गए। पूरी दुनिया की मीडिया उनके पैतृक गांव बिहार की तरफ चल दिए थे। तब लोगों ने जाना कि हमारे देश के इतने बड़े विद्वान की यह हालत है। आज उन्होंने अपने देश और समाज को अलविदा कहा। उनकी मृत्यु से आधुनिक युग का सबसे बड़ा गणितज्ञ अब हमारे बीच नहीं रहे । उनके निधन पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने दुख जताया। देश के अन्य जाने-माने व्यक्तियों ने भी महान गणितज्ञ के निधन पर दुख जाहिर किया।
आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी
महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने आइंस्टीन के सिद्धांत को भी चुनौती दे डाली थी।और विश्वभर के लोगो के संज्ञान में आगये थे। लेकिन भूलने की बीमारी से ग्रसित होने के कारण उनकी प्रतिभा का फायदा पूरी दुनिया नहीं उठा पाई।
प्रतिभा को अमेरिका ने पहचाना
महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने नेतरहाट विद्यालय से अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की थी।पूरे बिहार के टोपर थे वो। जब वह पटना साइंस कॉलेज में पढ़ा करते थे, तब वहां पर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर जॉन कैली आये थे जिनकी नजर उन पर पद गयी। उन प्रोफेसर का नाम कैली था और 1965 में वह नारायण को अपने साथ अमेरिका ले गए।सन 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। इसी के बीच उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन मन नहीं लगने के कारण वह सन 1971 में अपने देश भारत लौट आए। उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और में भी काम किया।
बीमारी का पता शादी के बाद चला
शादी के बाद उन्हें अपनी बीमारी का पता चला था। सन 1973 में वशिष्ठ नारायण की शादी वंदना रानी सिंह से हुई। उसके बाद उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला था।वह छोटी-छोटी बातों पर काफी गुस्सा करते थे, वह कमरा बंद कर दिन-रात पढ़ते ही रहते थे, रात-भर जागते रहते थे यही सब उनके व्यवहार में था। इन्ही सब बर्तावों की वजह से उनकी पत्नी ने काम समय में ही उन्हें तलाक दे दिया।उनको सन 1974 में पहला दिल का दौरा पड़ा था।
भूलने की बीमारी से ग्रसित थे
महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह 44 साल से भूलने की बीमारी से जूझ रहे थे। जब वे नासा में काम करते थे, तब अपोलो की लॉन्चिंग से पहले अचानक 31 कम्प्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए थे तब जा कर उन्होंने कागज पर ही आकलन करना शुरू कर दिया था। जब कम्प्यूटर ठीक किये गए तो उनका और नासा के कम्प्यूटर्स का आकलन एक सामान था।
अचानक गायब हो गए थे
अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें बेंगलुरु ले जा रहे थे तभी वह रास्ते में खंडवा स्टेशन पर उतर गए थे और भीड़ में कहीं खो गए थे। तकरीबन 5 साल तक गुमनाम होने के बाद उनके गांव के लोगों को वे छपरा में मिले।पूरी दुनिया की मीडिया उनके पैतृक गांव बिहार की तरफ चल दिए थे। इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली। उन्हें फिर बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा था। जहां मार्च 1993 से लेकर के जून 1997 तक उनका इलाज चला। इसके बाद से वे अपने गांव में ही रह रहे थे। स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हे 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया।तकरीबन एक साल दो महीने तक उनका इलाज चला था और स्वास्थ्य में लाभ को देखते हुए उन्हें यहां से फिर छुट्टी दे दी गई थी।
राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार होगा
सीएम नीतिश कुमार ने उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से करने को कहा है जबकि सुनने में ऐसा भी आ रहा है की उनके शव को ले जाने के लिए भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं थी। देश के इतने बड़े गणितज्ञ के पास इतना अभाव हो हमारे देश के लिए शर्म की बात है।