औरंगज़ेब भी जिस मंदिर को नहीं तोड़ पाया था

Abhishek Jha
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आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसे औरंगजेब भी नहीं तोड़ पाया था। और ऐसा नहीं था की औरंगजेब ने दया करके इस मंदिर को छोड़ दिया बल्कि इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण था डर। जैसा कि आप सभी जानते हैं औरंगजेब ने भारत में हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचाने के लिए और उन्हें नीचा दिखाने के लिए ना जाने कितने ही मंदिरों को तोड़ा। लेकिन इस मंदिर को औरंगजेब छू भी नहीं पाया ।

बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित भगवान सूर्यनारायण का यह मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। आपने हर जगह देखा होगा की भगवान सूर्य का मंदिर जहां भी है वहां मुख्य द्वार पूर्व की दिशा में होता है लेकिन औरंगाबाद जिले का यह मंदिर अपने आप में अनोखा मंदिर है क्योंकि यहां मुख्य द्वार पश्चिम में है। और इस द्वार के पश्चिम में होने का कारण सीधा-सीधा औरंगजेब से जुड़ा हुआ है।

 कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं एक रात में किया था। इस मंदिर को कब बनाया गया इसे सटीक रूप में बता पाना मुश्किल है। धर्म ग्रंथों की देखें तो उसमें इस मंदिर को त्रेता युग में शिलान्यास करने की बात कही गई है। 

ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में एक बार महाराजा एल देव जंगल में शिकार खेलने गए थे। शिकार खेलते खेलते उन्हें प्यास लगी और उन्होंने अपने एक सैनिक को आसपास से पानी लाने के लिए कहा। सैनिक ने  पास के गड्ढे से पानी भरकर राजा को दे दिया।

 उस गड्ढे का पानी जैसे ही राजा के हाथ से स्पर्श हुआ उनके हाथ का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। इसके बाद राजा उस गड्ढे के पास पहुंचे और वहां स्नान किया। स्नान करने के बाद राजा का कुष्ठ रोग पूरी तरह से ठीक हो गया और वह राजमहल लौट आए। उसी रात राजा को एक सपना आया जिसमें उन्होंने देखा कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था उसमें तीन मूर्तियां है। इसके बाद राजा अपने सहयोगियों के साथ उस स्थान पर पहुंचे और वहां से मूर्तियां निकाल कर उन्हें स्थापित किया और एक  भव्य मंदिर भी बनवाया। यह मूर्तियां भगवान सूर्य के 3 रूपों की थी-पूर्वाभिमुख, मध्याभिमुख और पश्चिमाभिमुख और इन तीनों रूपों की मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया। और जिस गड्ढे में राजा ने स्नान किया था उसे सूर्यकुंड का नाम दिया गया। 

वर्तमान समय में मंदिर के संरचना नागर वास्तु शैली की है। यह मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा है और इसके शीर्ष पर कमल के आकार का गुंबद बना है  और साथ ही सोने का एक कलश भी स्थापित है।

 ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी और मथुरा की तरह इस सूर्य मंदिर को भी ध्वस्त करने के आदेश दिए थे। इस मंदिर की प्राचीनता और भव्यता के कारण औरंगजेब से तोड़ना चाहता था और इसीलिए वह खुद अपने सैनिकों के साथ यहां पहुंचा। जैसे ही औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया वहां के स्थानीय लोगों और पुजारी ने  उससे ऐसा न करने का आग्रह किया। लोगों के ऐसा करने पर औरंगजेब ने कहा कि  जिस मंदिर को तुम लोग इतना प्राचीन और महिमा वाला बता रहे हो अगर इसका द्वार आज रात पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर हो जाएगा तो वह इस मंदिर को नहीं तोड़ेगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो मंदिर को कोई नहीं बचा पाएगा। ऐसा कहकर औरंगजेब अपनी सेना के साथ वहां से चला गया। कही सुनी और मान्यता के अनुसार अगले दिन जब औरंगजेब अपने लाव लश्कर के साथ वहां पहुंचा तो उसने देखा कि मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ हो गया है। इसके बाद औरंगजेब के मन में डर बैठ गया और उसने मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचाया। 

मंदिर के आसपास आपको बिखरे हुई मूर्तियों के अवशेष मिलेंगे। स्थानीय लोगों का कहना है की काला पहाड़ नामक क्रूर शासक ने इन्हें तोड़ा है। काला पहाड़ का वास्तविक नाम कालाचंद राय था वह हिंदू था जिसने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया था।

इतिहास के अनुसार,  काला पहाड़ 16 मी सदी के बंगाल के शासक सुलेमान कर्रानी का सेनापति था। उसने कोणार्क के सूर्य मंदिर, असम के कामाख्या मंदिर और उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर पर भी हमला किया था। ऐसा कहा जाता है कि औरंगाबाद के इस सूर्य मंदिर पर काला पहाड़ में भारी लूटपाट की। ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य की इन तीनों मूर्तियों को वह खंडित नहीं कर पाया था। 

इसी तरह ना जाने कितने आक्रांता इस मंदिर को तोड़ने आए लेकिन इसके अस्तित्व को नहीं मिटा सके। भगवान सूर्यनारायण स्वयं इस मंदिर के रक्षक बनकर आज भी भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। यह धर्म की ही ताकत है की आंधियां तो बहुत चली लेकिन कोई भी इसका अस्तित्व ना मिटा  सकी।

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