आरयूएसआई में लैंड वारफेयर के सीनियर रिसर्च फेलो जैक वाटलिंग और आरयूएसआई के रिसर्च एनालिस्ट निक रेनॉल्ड्स द्वारा लिखित "ऑपरेशन जेड: द डेथ थ्रोज ऑफ एन इंपीरियल डेल्यूजन" शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों का मतलब है कि रूस अपने जेट, मिसाइलों और अन्य उच्च तकनीक वाले हथियारों के काम करने के लिए पार्ट्स की तस्करी पर अधिक निर्भर हो जाएगा। कुछ पार्ट्स का दोहरा प्रयोग होता है मतलब की ये नागरिक और सैन्य दोनों के लिए उपयोग में होता है। रिपोर्ट में बताई गयी ये बात को अगर सच माना जाए तो तस्करी पर रोक से रूस पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे उसके हथियार प्रभावित हो सकते है।
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भारत पर निर्यात प्रतिबन्ध की कोशिश
लेकिन इसके रिपोर्ट के लेखक, जैक वाटलिंग और निक रेनॉल्ड्स ने चेतावनी दी है कि "रूस ने तीसरे देशों के माध्यम से इन वस्तुओं के प्रयोग के लिए एक तरीका स्थापित किया है", इसलिए उनका तर्क है कि भारत को विशिष्ट प्रतिबंधों के अधीन होना चाहिए। जिसका अर्थ भारत जैसे देशों में निर्यात को रोकना है जबकि ये पार्ट्स नागरिक की जरूरतों के लिए भी उपयोग किए जाते हैं।"
प्रमुख रूसी हथियार प्रणालियों में पश्चिमी कॉम्पोनेन्ट
"युद्ध के मैदान से बरामद सभी प्रमुख रूसी हथियार प्रणालियों में पश्चिमी कॉम्पोनेन्ट का उपयोग है। 9M949 निर्देशित 300 मिमी रॉकेट अपने नेविगेशन के लिए यूएस-निर्मित फाइबर-ऑप्टिक जाइरोस्कोप का उपयोग करता है। रूसी टीओआर-एम2 वायु-रक्षा प्रणाली प्लेटफॉर्म के रडार को नियंत्रित करने वाले कंप्यूटर में ब्रिटिश-डिज़ाइन किए गए oscillator पर निर्भर करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्कंदर-एम, कलिब्र क्रूज मिसाइल, KH -101 एयर-लॉन्च क्रूज मिसाइल और कई अन्य में पश्चिमी कम्पोनेट का उपयोग है। "रूस का आधुनिक सैन्य हार्डवेयर यूएस, यूके, जर्मनी, नीदरलैंड, जापान, इज़राइल, चीन और अन्य क्षेत्रों से आयातित जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भर है।" लेकिन लेखकों का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि इन पार्ट्स को बनाने वाली पश्चिमी कंपनियां ये जानती थीं कि नहीं की रूसी सेना इन पार्ट्स की अंतिम उपयोगकर्ता थी"।
तस्करी करना और भी ज्यादा कठिन
यूके का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग अब रूस के खिलाफ और अधिक प्रतिबंध विकसित करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ और मजबूती से काम करने पर जोर दे रहा है जिससे रूस के लिए तस्करी करना और भी ज्यादा कठिन हो जाएगा।
रूसी राष्ट्रपति प्रशासन ने अंतर-विभागीय समिति की स्थापना की
लेखकों के अनुसार, मार्च के मध्य में रूसी राष्ट्रपति प्रशासन ने रूसी रक्षा उपकरणों के घटकों (Parts) की कमी को पूरा करने के लिए एक अंतर-विभागीय समिति की स्थापना की जो ये सर्वे करेगा की ऐसे कौन से पार्ट्स हैं जिसे घरेलू रूप से उत्पादित किया जा सकता है और जिसे "दोस्ताना" देशों से प्राप्त किया जा सकता है तथा इसके साथ ही जिसे गुप्त रूप से प्राप्त किया जा सकता है।
रूस ब्लैकमेल करने के लिए भी है तैयार
अगर इन गुप्त मार्गों को बंद करने की कोशिश की जाती है तो रूस इन गुप्त चैनलों को खुला रखने के लिए ब्लैकमेल करने के लिए भी तैयार है। उदाहरण के लिए, रूसी क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों में कई कंप्यूटर घटक रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम में नागरिक उपयोग के लिए खरीदे जाते हैं। इसके अलावा, चेक गणराज्य, सर्बिया, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, तुर्की, भारत और चीन सहित दुनिया भर में असंख्य कंपनियां हैं, जो रूसी आपूर्ति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काफी जोखिम उठाएंगी। इन देशों में सरकारों के साथ तालमेल किए बिना इन आपूर्ति मार्गों को प्रतिबंधित करना मुश्किल बात होगी। यूके सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा: "हम निर्यात नियंत्रण के उल्लंघन के सभी विश्वसनीय आरोपों को गंभीरता से लेते हैं, और यदि सही होगा तो हम आगे की कार्रवाई करेंगे।"
बोरिस जॉनसन ने भारत के साथ दोस्ती को बढ़ावा दिया
लेकिन ब्रिटिश रक्षा और सुरक्षा थिंक टैंक, रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (आरयूएसआई) की रिपोर्ट में किया दावा अभी तक सिद्ध नहीं किया गया है। जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत आये तो उन्होंने भारत के साथ और अधिक रक्षा क्षेत्रों को बढ़ावा देने की बात कही इसके साथ ही भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार को बढ़ाने को बात की। इसके साथ ही ब्रिटेन की सरकार ने घोषणा की कि वह भारत को एक खुला सामान्य निर्यात लाइसेंस जारी करके भारत के साथ हथियारों के निर्यात लाइसेंसिंग व्यवस्था को आसान बनाएगी।
देशों के सम्बन्धो के बीच एक असमंजस की स्तिथि बनेगी
अगर इस रिपोर्ट को मानते हुए ब्रिटेन सरकार विभिन्न देशों के ऊपर निर्यात पर रोक लगाएगी तो उससे ब्रिटेन को ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा। ऐसे बहुत से पार्ट्स है जो आम लोगों और मिलिट्री दोनों के उपयोग में आती है तो निर्यात पर रोक लगाने से देशों के सम्बन्धो के बीच एक असमंजस का माहौल बन जाएगा। और ये बात ब्रिटेन सरकार जानती है।