"चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान" ये आखिरी वाक्य था जो चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को कहा था जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को मृत्यु दी। पर ऐसा हुआ ही क्या था जो इन शब्दों को पृथ्वीराज चौहान को कहना पड़ा।आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच कई बार युद्ध हुए और हर बार पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी को बुरी तरह शिकस्त देते थे। कुछ इतिहासकारों मानना है की तकरीबन 16 बार मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान के सामने शिकस्त मिली। लेकिन 17 वें युद्ध में उसने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया। उसने पृथ्वीराज चौहान को बुरी यातनायें दी। इतना ही नहीं उसने पृथ्वीराज चौहान की दोनों आँखें फोड़ दी थी।
शब्द भेदी बाण विद्या की कला
अब आपके मन में ये बात समझ नहीं आ रही होगी की जब पृथ्वीराज चौहान ने अपनी आँखें खो दी और वह दुश्मन के कब्ज़े में थें तो उन्होंने मोहम्मद गौरी को कैसे मृत्यु दी? इस काम में पृथ्वीराज चौहान की मदद उनके सबसे विश्वसनीय मित्र चंद्रवरदाई ने की।चंद्र वरदाई ने मोहम्मद गौरी से मिलकर पृथ्वीराज चौहान की एक ख़ास बात बताई जिसे सुनकर मोहम्मद गौरी चौंक गया।चंद्रवरदाई ने शब्द भेदी बाण विद्या के बारें में बताया।शब्द भेदी बाण विद्या का मतलब था की पृथ्वीराज चौहान की आँखें अगर बंद भी हों तो भी वह शब्दों को सुनकर निशाना लगा सकते थे।
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान
जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को दरबार में बुलाया और उस शब्द भेदी बाण विद्या की कला को देखने की इच्छा रखी तब पृथ्वीराज चौहान ने धनुष बाण उठाया और चंद्र वरदाई के शब्दों को ध्यान से सुना। चन्द्रवरदाई ने पृथ्वीराज को कहा "चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान।" बस फिर क्या था पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को तीर मार कर मृत्यु के हवाले कर दिया। मोहम्मद गौरी के मरते ही उसकी सेना में हलचल मच गयी और उसकी सेना पृथ्वीराज और चन्द्रवरदाई को मारने उनकी ओर भागने लगी, लेकिन उनके आने से पहले ही दोनों वीरों ने छुरियों से जो पहले ही उन्होंने अपने पास तैयार रखी थी एक दूसरे के सीने पर घोंप दी।
राजा दशरथ को भी आती थी शब्द भेदी बाण विद्या
शब्दभेदी बाण विद्या काफी पुरानी विद्या है और कहा जाता है की राजा दशरथ जो की भगवान श्री राम के पिता थे को भी ये विद्या आती थी और उन्होंने उस विद्या का प्रायोग कर के श्रवण कुमार को गलती से तीर मार दिया था जिससे श्रवण की मृत्यु हो गयी थी। जिसके बाद उन्हें श्रवण कुमार के माँ-बाप ने श्राप दिया था की आप भी वह सब महसूस करेंगे जो हम दोनों इस समय कर रहें हैं।आप भी पुत्र से बिछड़ेंगे और पुत्र वियोग में जैसे हम तड़प रहें हैं वैसे आप भी तड़पेंगे । यह वहीँ श्रवण कुमार है जिन्होंने अपने माता-पिता जो देख नहीं सकते थे की इच्छा को पूरा करने के लिए एक मैकेनिज्म का निर्माण किया जिसमें दो टोकरियाँ थीं जो तीन रस्सियों से एक छड़ से बंधी थीं। श्रवण ने अपने माता-पिता को टोकरियों में, माँ को एक में और पिता को दूसरे में रखा, और छड़ी को अपने कंधों पर रखकर तीर्थ स्थल की और बढ़ गएँ थे ।
आखिर 17 वीं बार पृथ्वीराज चौहान की सेना को शिकस्त कैसे मिली ?
भारत को वीरों- वीरांगनाओं की धरती भी कहा जाता है परन्तु कुछ धोकेबाज़ भी यहां पैदा हुए है। जब मोहम्मद गौरी ने 17 वीं बार हमला किया तब हिंदुस्तान में उथल पुथल की स्थिति थी। बात ये थी की कन्नौज के राजा जय चंद की एक पुत्री थी और उनका नाम संयुक्ता था। वह बहुत सुन्दर, चतुर एवं होशियार राजकुमारी थी।
राजकुमारी ने पृथ्वीराज चौहान की महानता, वीरता और रणकौशल के बारे में बहुत सुना था और वह उन्हें ही मन से अपना पति मान चुकी थी। जयचंद ने राजकुमारी के विवाह के लिए सोचा और इसके लिए जयचंद ने स्वयंवर का ऐलान किया ताकि वह अपना वर चुन सके । तमाम राज्यों के राजकुमारों को स्वयंवर में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया। लेकिन प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान को जानबूझ कर निमंत्रण नहीं भेजा गया।
संयुक्ता को जब यह मालूम चला की उसके पिता ने पृथ्वी राज चौहान को निमंत्रण नहीं भेजा है तो उन्होंने एक निजी पत्र लिखकर अपने ख़ास विश्वासपात्र सेवक के हाथों से पत्र सम्राट को पहुंचा दिया इस अनुरोध के साथ की ‘ वे आएं और अपनी संयुकता को यहां से ले जाएँ’। स्वयंवर के दिन, सही समय पर पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर स्थल पर पहुंचे और राजकुमारी संयुक्ता को सबके सामने अपने अश्व पर बिठाकर ले गए।
राजधानी दिल्ली पहुंंचकर उन्होंने विधि-विधान से राजकुमारी संयुक्ता के साथ शादी की और संयुक्ता को महारानी का उच्च दर्जा देकर सम्मानित किया। इधर जयचंद इस घटना से अपने को अपमानित महसूस करने लगा और गुस्से में आकर पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए उसने सीधे गौरी से संपर्क कर दिया, और उसे दिल्ली पर आक्रमण करने का निमंत्रण दे दिया। साथ ही इस लड़ाई में गौरी की सेना को मदद देने का भी वचन दिया। गौरी ऐसे अवसर का ही इंतज़ार कर रहा था। उसने बड़ी सेना लेकर दिल्ली पर अचानक आक्रमण कर दिया। जयचंद ने भी अपने सैनिकों के साथ गौरी का साथ दिया।
उस समय किसी अन्य भारतीय राजा ने पृथ्वीराज चौहान की मदद नहीं की। भारतीय विदेश निति के लिए वह बहुत बुरा समय था। इस बार मोहम्मद गौरी ने भारत में हो रहे उथल-पुथल का फायदा उठाया था और रणभूमि में वीर पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया था। इतना ही नहीं मोहम्मद गौरी ने जयचंद को इनाम देने का सोचा जिसमें मोहम्मद गौरी ने जयचंद का ही सिर काटने का आदेश दे डाला। अंत में मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज को प्रताड़ना देने के लिए अपने देश ले आया जहां पृथ्वीराज ने शब्द भेदी बाण विद्या से मोहम्मद गौरी को मृत्यु दी।
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