जैसा कि आप सभी जानते हैं की दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को प्रवर्तन निदेशालय, यानी ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया है। 2017 में उनके खिलाफ सीबीआई ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था उसी के तहत ईडी ने यह कार्रवाई की है।
सत्येंद्र जैन के आरोपों के विस्तार में चर्चा करें उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर यह मनी लॉन्ड्रिंग होता क्या है?
आपको सीधी सीधी भाषा में बताएं तो अवैध पैसे को वैध बनाना या ब्लैक मनी को व्हाइट बनाना money-laundering कहलाता है। ऐसी कमाई जिसे सरकार से छुपाया जाता है या फिर जिस पर टैक्स नहीं दिया जाता उसे ब्लैक मनी कहते हैं। जब कोई पैसा अवैध गतिविधियों से आता है जैसे तस्करी, भ्रष्टाचार, जुआ इत्यादि जहां पर पैसे के सोर्स को छुपाना जरूरी हो जाता है, तो ऐसे मामलों में मनी लॉन्ड्रिंग की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में मनी लॉन्ड्रिंग के हाल के वर्षों में कुछ सबसे चर्चित केस
ऐसा नहीं है कि भारत में मनी लॉन्ड्रिंग का यह इकलौता केस है, देश में ऐसे बहुत से केस हुए हैं जिनमें अगर कुछ बहुचर्चित ओं की बात करें तो ABG शिपयार्ड का 22 हजार करोड़ का स्कैम, नीरव मोदी का 11 हजार करोड़ का फ्रॉड, विजय माल्या का 9 हजार करोड़ का फ्रॉड, शारदा ग्रुप का 2500 करोड़ का फ्रॉड… यह सभी केस मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े हुए थे जिन पर सरकार द्वारा कार्यवाही की गई।
सत्येंद्र जैन पर हैं मनी लॉन्ड्रिंग के कौन से आरोप
CBI ने 2017 में जैन और उनके परिवार पर 1.62 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए केस दर्ज किया था। CBI ने आरोप लगाया था कि सत्येंद्र जैन और उनके परिवार ने चार छोटी शेल फर्म- बनाते हुए 2011-12 में 11.78 करोड़ रुपए और 2015-16 में 4.63 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग की थी। CBI के इसी FIR के आधार पर ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच शुरू की थी। CBI ने कहा था कि जैन इन चार कंपनियों को मिले धन के सोर्स के बारे में नहीं बता सके, जिनमें वह शेयरधारक थे।
शेल फर्म क्या होता है?
शेल फर्म या कागजी कंपनी एक ही बात है, यह ऐसी कंपनियां होती हैं, जिनका हकीकत में कोई बिजनेस नहीं होता है।
ईडी ने कहा कि यहां हवाला के जरिए भी पैसों का ट्रांसफर हुआ था । अब यहां हवाला शब्द का भी इस्तेमाल हुआ है तो आपको बताते हैं कि हवाला ट्रांजैक्शन क्या होता है?
रुपये को दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह अवैध रूप से ट्रांसफर करने को ही हवाला कहते हैं। इसमें एक रुपये भेजने वाला और दूसरा रुपये पाने वाला होता है और उनके बीच में कम से कम दो बिचौलिए होते हैं। इसके लिए न तो बैंकों की जरूरत है और न ही करेंसी एक्सचेंज की। हवाला ट्रांजैक्शन भी मनी लॉन्ड्रिंग के तहत आता है। माना जाता है कि हवाला की शुरुआत साउथ एशिया में 8वीं शताब्दी के दौरान हुई थी। 1990 के दशक में भारत में हवाला ट्रांजैक्शन खूब चर्चा में रहा था। हवाला सिस्टम में दो पक्षों के बीच पैसों का लेनदेन उनकी ओर से स्थानीय एजेंट बिना बैकिंग सिस्टम को शामिल किए ही करते हैं।
हवाला में सबसे अहम भूमिका एजेंट या बिचौलिए की होती है, क्योंकि ये बिचौलिए किसी लेनदेन का रिकॉर्ड नहीं छोड़ते हैं। यही वजह है कि हवाला के जरिए ट्रांसफर होने वाला रुपया कहां से निकल कर कहां पहुंचा, इसका पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए हवाला का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर भ्रष्टाचार और टेरर फंडिंग तक में होता है।
अमेरिका का मानना है कि 9/11 हमले के लिए फंड जुटाने के लिए अलकायदा ने हवाला नेटवर्क का ही इस्तेमाल किया था। 2018 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुबई में हवाला जैसे साधनों का इस्तेमाल कर अब भी विदेशी कामगार भारत, फिलीपिंस जैसे देशों में अपने परिवारों को पैसे भेजते हैं।ऐसा कहा जाता है कि उस साल इस तरह से दुबई से 240 करोड़ रुपए भेजे गए थे। इसकी वजह ये है कि हवाला से पैसे भेजने में लगने वाली फीस बैंकों द्वारा ली जाने वाली फीस से कम होती है।