इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एससी एसटी एक्ट को को लेकर बड़ी बात कही है कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किए गए मामलों में पीड़िता और पीड़ित को मुआवजा तब तक ना दिया जाए जब तक अभियुक्त का दोष सिद्ध ना हो जाए। दोष सिद्ध होने के बाद ही पीड़ित को मुआवजा दिया जाए यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह जी के एकल पीठ के द्वारा दिया गया है। मामले पर नजर डालें तो इसरार अहमद की ओर से याचिका दाखिल किया गया था। याचिका में मांग किया गया था कि उनके खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत रायबरेली जनपद की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट के साथ पूरे मुकदमे को भी खारिज कर दिया जाए। उनका कहना था कि इस मामले में आपसी सुलह हो चुका है। वादी के द्वारा इस मामले में सुलह की बात का समर्थन किया गया।
इस पर कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया लेकिन एक बहुत बड़ी टिप्पणी भी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार से वादी ने इस मामले में राज्य सरकार से ₹75000 मुआवजे के तौर पर लिए हैं। और अब मुआवजे का पैसा मिल गया फिर सुलह की बात सामने आ रही है।
इस तरीके से मुआवजा लेने और फिर बाद में सुलह होने का चलन बढ़ता जा रहा है। इसलिए कोर्ट ने राज्य सरकार को यह राय दिया कि जब तक दोष सिद्ध ना हो जाए तब तक मुआवजे का ना दें । इस तरह से मुआवजा बांटकर टैक्स देने वालों के पैसों का दुरुपयोग हो रहा है।