मध्य प्रदेश में युवा वकीलों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत की घोषणा की गई है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सिफारिश की है कि शहरी क्षेत्रों में जूनियर वकीलों को कम से कम 20,000 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 15,000 रुपये का मासिक स्टाइपेंड (वजीफा) दिया जाए। यह कदम युवा वकीलों को उनके पेशे के शुरुआती वर्षों में वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है। BCI ने यह सिफारिश दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद की है, जिसमें जूनियर वकीलों के लिए मासिक स्टाइपेंड पर निर्णय लेने को कहा गया था। इस सिफारिश का उद्देश्य युवा वकीलों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करना है, ताकि वे अपने करियर की शुरुआत में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भी युवा वकीलों की मुकदमेबाजी छोड़ने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि युवा प्रतिभाओं का मुकदमेबाजी से दूर होना केवल व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं है, बल्कि यह पेशे में अल्प वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा जैसे संरचनात्मक मुद्दों का लक्षण है, खासकर पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि युवा वकीलों को वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है, ताकि वे मुकदमेबाजी के क्षेत्र में बने रहें और जनहित के कार्यों में योगदान दे सकें। इस संदर्भ में, BCI की सिफारिशें युवा वकीलों के लिए एक सकारात्मक कदम हैं।
मद्रास हाईकोर्ट ने भी जूनियर वकीलों के लिए मासिक स्टाइपेंड की आवश्यकता पर जोर दिया है। अदालत ने कहा कि युवा वकीलों से बिना भुगतान के काम करने की उम्मीद करना अस्वीकार्य है। इसलिए, चेन्नई, मदुरै और कोयंबटूर में प्रैक्टिस करने वाले युवा वकीलों के लिए न्यूनतम 20,000 रुपये और अन्य जिलों में वकीलों के लिए न्यूनतम 15,000 रुपये का स्टाइपेंड तय किया गया है। यह निर्णय युवा वकीलों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने और उनके पेशेवर विकास में सहायता करने के उद्देश्य से लिया गया है। इससे युवा वकीलों को अपने करियर की शुरुआत में आने वाली वित्तीय चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी वकीलों के नामांकन शुल्क के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। अदालत ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल वकीलों से नामांकन शुल्क के रूप में हजारों रुपये नहीं ले सकते। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सामान्य श्रेणी के वकीलों के लिए नामांकन शुल्क 750 रुपये और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी के वकीलों के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता। यह निर्णय वकीलों के लिए पेशे में प्रवेश को अधिक सुलभ बनाने के उद्देश्य से लिया गया है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के वकील भी आसानी से पेशे में शामिल हो सकें। इससे वकीलों के लिए पेशे में प्रवेश की बाधाएं कम होंगी और अधिक लोग इस क्षेत्र में आ सकेंगे।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी वकीलों की हड़ताल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका शुरू की है। अदालत ने कहा कि वकीलों का कर्तव्य कानून के शासन को बनाए रखना है और वादियों के कानूनी अधिकारों की रक्षा करना है। इसलिए, अदालत ने निर्देश दिया कि सभी वकील अपने न्यायालय के काम में तत्काल उपस्थित हों और संबंधित मामलों में अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करें। यदि कोई वकील जानबूझकर अदालत में उपस्थित होने से परहेज करता है, तो उसे अदालत की अवमानना के लिए कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की सुचारूता और वादियों के हितों की रक्षा के लिए लिया गया है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में बाधाएं कम होंगी और वादियों को समय पर न्याय मिल सकेगा।
इन सभी निर्णयों और सिफारिशों का उद्देश्य वकीलों के पेशे को अधिक सुलभ, न्यायसंगत और समर्थ बनाना है। युवा वकीलों को वित्तीय सहायता प्रदान करने से न केवल उनके पेशेवर विकास में सहायता मिलेगी, बल्कि न्यायिक प्रणाली में उनकी सक्रिय भागीदारी भी सुनिश्चित होगी। साथ ही, नामांकन शुल्क में कमी और हड़तालों पर नियंत्रण से न्यायिक प्रक्रिया की सुचारूता बनी रहेगी और वादियों के हितों की रक्षा होगी। इस प्रकार, ये कदम न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने में सहायक होंगे।