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China’s DeepSeek AI |
चीन की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कंपनी डीप सीक (DeepSeek) ने हाल ही में अपने नए AI मॉडल को लॉन्च कर पूरे तकनीकी जगत में हलचल मचा दी है। डीप सीक का नया AI मॉडल न केवल ओपनएआई (OpenAI) के चैटजीपीटी (ChatGPT) को कड़ी टक्कर दे रहा है, बल्कि इसके प्रभाव से अमेरिकी टेक कंपनियों के शेयर भी गिर गए हैं। डीप सीक का यह तेजी से बढ़ता वर्चस्व अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। डीप सीक का AI मॉडल R1 न केवल सटीकता और स्पीड के मामले में आगे है, बल्कि इसकी लागत भी अमेरिकी कंपनियों की तुलना में काफी कम है। यही कारण है कि यह AI बाजार में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और लोग इसे बड़े पैमाने पर अपनाने लगे हैं। डीप सीक के इस नए AI मॉडल की सफलता को अमेरिका में "स्पूतनिक मोमेंट" (Sputnik Moment) के रूप में देखा जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि चीन अब तकनीकी क्षेत्र में भी अमेरिका को मात देने की क्षमता रखता है।
डीप सीक के R1 मॉडल की सबसे बड़ी खासियत इसकी एडवांस्ड रीजनिंग (Advanced Reasoning) और लॉजिकल प्रोसेसिंग (Logical Processing) क्षमता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह मॉडल कोडिंग और लॉजिकल रीजनिंग के क्षेत्र में चैटजीपीटी से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इतना ही नहीं, इसकी लागत ओपनएआई के AI मॉडल्स से 20 से 50 गुना तक कम है, जिससे यह डेवलपर्स और रिसर्चर्स के लिए ज्यादा आकर्षक विकल्प बन चुका है। डीप सीक के इस मॉडल की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह अमेरिका में ऐप स्टोर पर सबसे ज्यादा डाउनलोड किए जाने वाले ऐप्स में से एक बन गया है। यह एक चीनी AI ऐप के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि आमतौर पर अमेरिकी और पश्चिमी देश चीनी तकनीकों को संदेह की नजर से देखते हैं।
डीप सीक की इस सफलता के पीछे अमेरिकी सरकार की रणनीतिक गलती भी एक अहम कारण मानी जा रही है। दरअसल, 2021 में अमेरिका ने चीन को एडवांस्ड चिप्स और AI कंपोनेंट्स के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि वह चीन को AI तकनीक के मामले में पीछे रख सके। लेकिन इस फैसले के चलते चीन ने अपनी खुद की AI तकनीकों को विकसित करने पर जोर दिया और नतीजा यह हुआ कि डीप सीक जैसी कंपनियां उभरकर सामने आईं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, डीप सीक के संस्थापक लियांग वेन फेंग (Liang Wen Feng) ने अमेरिकी बैन से पहले ही हजारों NVIDIA A100 चिप्स खरीद लिए थे, जिससे उन्होंने अपना AI मॉडल तैयार किया। यह वही AI मॉडल है, जिसने आज ओपनएआई और अन्य अमेरिकी टेक कंपनियों की नींद उड़ा दी है।
अमेरिकी टेक दिग्गजों के लिए चिंता की बात यह भी है कि डीप सीक ने अपने AI मॉडल को ओपन वेट्स (Open Weights) के रूप में जारी किया है। इसका मतलब यह है कि डेवलपर्स और रिसर्चर्स इसे फ्री में एक्सेस कर सकते हैं और इसे अपने हिसाब से मॉडिफाई कर सकते हैं। हालांकि, डीप सीक ने अपने AI मॉडल का ट्रेनिंग डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है, जिससे इसे पूरी तरह से ओपन सोर्स नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसके बावजूद यह AI डेवलपमेंट की दिशा में एक बड़ी क्रांति साबित हो सकता है।
डीप सीक की इस सफलता का सबसे बड़ा असर अमेरिकी शेयर बाजार पर पड़ा है। एनवीडिया (NVIDIA), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) और मेटा (Meta) जैसी टेक कंपनियों के शेयर भारी गिरावट के साथ नीचे आ गए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, एनवीडिया के शेयर एक ही दिन में 17% तक गिर गए, जिससे कंपनी का मार्केट कैप लगभग 60 बिलियन डॉलर तक कम हो गया। यह अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि एनवीडिया AI चिपसेट मार्केट में सबसे आगे मानी जाती है। वहीं, मेटा और गूगल (Google) जैसी कंपनियों के AI प्लान्स पर भी डीप सीक के प्रभाव के चलते सवाल उठने लगे हैं।
डीप सीक के उभरने से अमेरिका और चीन के बीच AI की दौड़ और तेज हो गई है। अमेरिका को अब यह एहसास हो रहा है कि वह केवल प्रतिबंध लगाकर चीन को AI तकनीक में पीछे नहीं रख सकता। बल्कि, उसे अपनी खुद की AI क्षमताओं को और मजबूत करने की जरूरत है। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है और इसे अमेरिका के लिए एक वेक-अप कॉल (Wake-up Call) बताया है। उनका कहना है कि अब अमेरिकी टेक कंपनियों को अरबों डॉलर खर्च करने के बजाय सस्ते और प्रभावी AI समाधानों पर ध्यान देना होगा।
इस पूरे घटनाक्रम का भारत के लिए भी एक बड़ा संदेश है। डीप सीक की सफलता यह दिखाती है कि AI तकनीक में आगे बढ़ने के लिए केवल महंगी चिप्स और बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत नहीं होती, बल्कि स्मार्ट इनोवेशन और सही रणनीति भी मायने रखती है। भारत, जो अब तक AI में काफी पीछे रहा है, इस मौके का फायदा उठाकर अपनी AI क्षमताओं को और मजबूत कर सकता है। अगर भारत सही नीतियां अपनाए और स्थानीय AI स्टार्टअप्स को बढ़ावा दे, तो वह भी इस दौड़ में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
डीप सीक की इस सफलता ने वैश्विक AI इंडस्ट्री को एक नया मोड़ दे दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेरिका इस चुनौती का सामना कर पाएगा, या फिर आने वाले समय में चीन AI की दुनिया में सबसे आगे निकल जाएगा। AI की यह दौड़ केवल तकनीकी प्रतिस्पर्धा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य की वैश्विक शक्ति संतुलन को भी निर्धारित कर सकती है। ऐसे में, AI के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अमेरिका और भारत दोनों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करने की जरूरत है।