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China's Nuclear Fusion |
चीन ने हाल ही में न्यूक्लियर फ्यूजन (nuclear fusion) में एक बड़ी सफलता हासिल की है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। यह उपलब्धि न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि भविष्य की ऊर्जा क्रांति का संकेत भी देती है। न्यूक्लियर फ्यूजन वह प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य तारों में ऊर्जा उत्पन्न करती है। वैज्ञानिक लंबे समय से इस प्रक्रिया को पृथ्वी पर दोहराने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि असीमित और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत प्राप्त किया जा सके। चीन के इस प्रयोग ने इस दिशा में एक नया रिकॉर्ड कायम किया है, जिसमें 17 मिनट तक फ्यूजन रिएक्टर को स्थिर रखा गया। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है और इसे विज्ञान जगत में एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा जा रहा है।
फ्यूजन रिएक्शन को समझने के लिए हमें पहले फिजन (fission) और फ्यूजन (fusion) में अंतर समझना होगा। वर्तमान में दुनिया में जो न्यूक्लियर पावर प्लांट हैं, वे फिजन तकनीक पर आधारित हैं, जिसमें भारी तत्वों जैसे यूरेनियम (uranium) या प्लूटोनियम (plutonium) को तोड़कर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। लेकिन इस प्रक्रिया में रेडियोएक्टिव (radioactive) कचरा उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है। दूसरी ओर, फ्यूजन में दो हल्के तत्वों, जैसे हाइड्रोजन के आइसोटोप ड्यूटेरियम (deuterium) और ट्रिटियम (tritium) को मिलाकर भारी तत्व, जैसे हीलियम (helium) बनाया जाता है, जिससे अपार मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह वही प्रक्रिया है जो सूर्य में हो रही है और जिससे वह अरबों वर्षों से ऊर्जा दे रहा है।
फ्यूजन एनर्जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कोई हानिकारक गैस नहीं निकलती, और यह लगभग अनंत ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकती है। एक ग्राम फ्यूजन फ्यूल से उतनी ही ऊर्जा मिल सकती है जितनी आठ टन कोयले से मिलती है। यह तथ्य बताता है कि अगर वैज्ञानिक फ्यूजन तकनीक को पूरी तरह से नियंत्रित करने में सफल हो जाते हैं, तो दुनिया में ऊर्जा संकट हमेशा के लिए समाप्त हो सकता है। यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा, बल्कि इससे प्रदूषण भी नहीं फैलेगा और यह कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) को भी समाप्त कर सकता है।
चीन ने इस तकनीक में नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। इससे पहले ब्रिटेन की एक प्रयोगशाला ने फ्यूजन ऊर्जा को केवल 5 सेकंड के लिए नियंत्रित किया था, लेकिन चीन ने इसे 17 मिनट तक स्थिर रखा है। यह दर्शाता है कि चीन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है और नई-नई खोजों पर भारी निवेश कर रहा है। चीन का यह "ईस्ट रिएक्टर" (EAST Reactor - Experimental Advanced Superconducting Tokamak) पूर्वी चीन में स्थित है और इसे "कृत्रिम सूर्य" (Artificial Sun) भी कहा जा रहा है। इस प्रयोग में उन्होंने अत्यधिक ऊष्मा और दबाव का उपयोग करके प्लाज्मा (plasma) को 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान तक बनाए रखा। यह सूरज के केंद्र के तापमान से भी छह गुना अधिक गर्म था।
फ्यूजन प्रक्रिया को नियंत्रण में रखना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। इसके लिए अत्यधिक ऊष्मा और दबाव की जरूरत होती है, जिससे पदार्थ प्लाज्मा में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन इस प्लाज्मा को स्थिर रखना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि यह बेहद अस्थिर होता है और किसी भी छोटी सी गलती से पूरा प्रयोग असफल हो सकता है। इसलिए, वैज्ञानिकों को प्लाज्मा को नियंत्रित करने के लिए मजबूत चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) का उपयोग करना पड़ता है। चीन ने इस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता साबित कर दी है और इस नई सफलता के साथ वह फ्यूजन एनर्जी के व्यावसायिक उपयोग की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
फ्यूजन तकनीक को व्यावसायिक रूप से लागू करना अभी दूर की कौड़ी है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि 2050 तक यह हकीकत बन सकता है। वर्तमान में दुनिया के 30 से अधिक देश "आईटीईआर" (ITER - International Thermonuclear Experimental Reactor) परियोजना पर काम कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य फ्यूजन एनर्जी को एक व्यावसायिक स्तर पर लाना है। यह परियोजना फ्रांस में चल रही है और इसमें भारत, अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं। भारत भी इस परियोजना का हिस्सा है और फ्यूजन तकनीक के विकास में योगदान दे रहा है।
हालांकि, भारत अभी इस तकनीक में चीन और पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे है। भारत को इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने और अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। फ्यूजन एनर्जी भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है, और भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए तेजी से काम करना होगा।
चीन की इस सफलता से पूरी दुनिया में हलचल मच गई है। अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे विकसित देश भी इस तकनीक पर काम कर रहे हैं, लेकिन चीन की यह उपलब्धि यह दिखाती है कि वह विज्ञान और तकनीक में दुनिया के अन्य देशों से आगे निकलता जा रहा है। फ्यूजन तकनीक का सफलतापूर्वक व्यावसायिक उपयोग न केवल ऊर्जा संकट को हल कर सकता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन (climate change) की समस्या को भी खत्म कर सकता है।
इस सफलता का प्रभाव वैश्विक स्तर पर पड़ सकता है। अगर फ्यूजन ऊर्जा सुलभ हो जाती है, तो तेल और गैस पर निर्भरता खत्म हो सकती है। कई देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तेल और गैस पर आधारित है, लेकिन अगर फ्यूजन एनर्जी का व्यावसायीकरण होता है, तो ऊर्जा उत्पादन पूरी तरह से बदल जाएगा। इससे ऊर्जा की लागत भी कम होगी और दुनिया के हर कोने में स्वच्छ और सस्ती बिजली उपलब्ध हो सकेगी।
हालांकि, अभी इस तकनीक को पूरी तरह से विकसित होने में कुछ दशक लग सकते हैं। वैज्ञानिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि प्लाज्मा को लंबे समय तक स्थिर रखना, फ्यूजन से उत्पन्न ऊर्जा को बिजली में बदलना और इसे एक सुरक्षित और सस्ती तकनीक बनाना। लेकिन जिस तरह से चीन और अन्य देश इस पर काम कर रहे हैं, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में यह सपना साकार हो सकता है।
चीन की यह उपलब्धि यह दर्शाती है कि विज्ञान और तकनीक में निवेश करने से कितनी बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। भारत समेत अन्य विकासशील देशों को भी इस तरह की तकनीकों पर ध्यान देना चाहिए और अनुसंधान में अधिक निवेश करना चाहिए। भविष्य में फ्यूजन एनर्जी न केवल एक ऊर्जा स्रोत होगी, बल्कि यह पूरे विश्व की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन बन सकती है।