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Google’s AI |
चिली में एक बड़े पर्यावरणीय विवाद ने जन्म लिया है, जहां गूगल समेत कई अन्य कंपनियां अपने एआई डेटा सेंटर बनाने की योजना बना रही हैं। पर्यावरण संगठन मोजाकैट (Mozacat) इन निर्माण कार्यों का विरोध कर रहा है, क्योंकि सैंटियागो, जो पहले से ही सूखे से प्रभावित क्षेत्र है, वहां डेटा सेंटरों के लिए भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होगी। कार्यकर्ताओं का मानना है कि इन परियोजनाओं का लाभ तो दुनिया के अन्य देशों को होगा, लेकिन इसकी कीमत चिली के स्थानीय लोग चुकाएंगे।
तानिया रोड्रिगेज जैसे कार्यकर्ता लंबे समय से इन डेटा सेंटरों से होने वाले संभावित पर्यावरणीय नुकसान की चेतावनी दे रहे हैं। उनका कहना है कि इन डेटा सेंटरों से चिली को कोई विशेष आर्थिक फायदा नहीं होगा, क्योंकि इनमें रोजगार के अवसर भी सीमित होते हैं। इसके अलावा, इनकी वजह से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। मोजाकैट संगठन खासतौर पर इस मुद्दे को उठाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और चिली की जल आपूर्ति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, डेटा सेंटरों के लिए पानी की जबरदस्त खपत एक गंभीर समस्या है। आंकड़ों के अनुसार, एक डेटा सेंटर प्रति सेकंड 169 लीटर पानी खर्च करता है। इसका मतलब है कि हर दिन यह सेंटर लगभग नौ ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल जितना पानी उपयोग करेगा, जिसे पहले भरा जाता है और फिर खाली किया जाता है। यह पानी दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जिससे पानी की भारी बर्बादी होती है।
चिली में पहले ही पानी की भारी कमी है, खासकर सैंटियागो और इसके आसपास के इलाकों में। ऐसे में डेटा सेंटरों के कारण पानी की खपत और बढ़ने से यहां के जल स्रोतों पर भारी दबाव पड़ सकता है। किली कूरा वेटलैंड्स (Kili Cura Wetlands) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए यह एक गंभीर खतरा बन सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले वे खेती कर सकते थे, लेकिन अब सूखे के कारण यह संभव नहीं है। कुछ इलाकों में जहां पहले स्ट्रॉबेरी उगाई जाती थी, अब वहां कोई भी फसल संभव नहीं है। लोगों को अपने दैनिक जीवन के लिए भी पानी खरीदना पड़ता है, यहां तक कि बाथरूम में इस्तेमाल के लिए भी।
सरकार की नीतियां भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार मानी जा रही हैं। सरकारी सहयोग और लचीले कानूनों के कारण सैंटियागो दक्षिण अमेरिका में डेटा सेंटरों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बन गया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि चिली में कानून काफी ढीले हैं और यहां राजनीतिक जवाबदेही भी बहुत कम है। यही कारण है कि बड़ी टेक कंपनियां अपने विशाल डेटा सेंटरों के लिए इस क्षेत्र को चुन रही हैं, लेकिन इसके परिणामस्वरूप स्थानीय पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पर्यावरण कार्यकर्ता मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence - AI) के कई फायदे हैं, लेकिन उनका मानना है कि इसकी कीमत किसी एक देश को अकेले नहीं चुकानी चाहिए। उनका तर्क है कि एआई डेटा सेंटरों की वजह से होने वाला पर्यावरणीय बोझ सभी देशों के बीच न्यायसंगत तरीके से साझा किया जाना चाहिए। चिली के प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यूरोप और अन्य विकसित देश इन परियोजनाओं को लैटिन अमेरिका में स्थानांतरित कर रहे हैं, जहां पर्यावरणीय नियम कमजोर हैं और संसाधनों का शोषण करना आसान है।
इस विरोध प्रदर्शन ने अंततः कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव डाले हैं। चिली की एक अदालत ने डेटा सेंटर निर्माण पर रोक लगाते हुए कहा कि इसे पर्यावरणीय प्रभावों के आधार पर पुनः मूल्यांकन किया जाना चाहिए। कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि सरकार अब इस विषय पर अधिक सख्त नियम बनाएगी और जल संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएगी।
इस विवाद ने दुनिया भर में तकनीकी कंपनियों के बढ़ते जल उपयोग पर भी ध्यान आकर्षित किया है। एआई और डेटा प्रोसेसिंग के लिए उन्नत सर्वर फार्म्स की आवश्यकता होती है, जो बड़े पैमाने पर ऊर्जा और जल का उपभोग करते हैं। जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता भी बढ़ रही है।
पर्यावरणविदों का मानना है कि गूगल और अन्य कंपनियों को चाहिए कि वे अपने डेटा सेंटरों के निर्माण में अधिक टिकाऊ (sustainable) उपाय अपनाएं। उदाहरण के लिए, पानी की खपत को कम करने के लिए अत्याधुनिक कूलिंग तकनीकों (cooling technologies) का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, डेटा सेंटरों को ऐसे स्थानों पर स्थापित किया जाना चाहिए जहां जल संकट न हो, ताकि स्थानीय आबादी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
चिली में इस मुद्दे पर जारी विरोध ने एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है। यह सिर्फ एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर तकनीकी विकास और पर्यावरण संतुलन के बीच सामंजस्य स्थापित करने का विषय है। जब तक तकनीकी कंपनियां और सरकारें मिलकर इस दिशा में काम नहीं करतीं, तब तक ऐसे संघर्ष भविष्य में भी जारी रह सकते हैं। चिली का यह विरोध संभवतः अन्य देशों के लिए एक मिसाल बनेगा और पर्यावरणीय न्याय (environmental justice) को बढ़ावा देने में मदद करेगा।