India's Future Unmanned Jets : दुश्मन के लिए बड़ी चुनौती!

NCI

India's Future Unmanned Jets

 भारत के रक्षा क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास और तकनीकी नवाचारों के बीच, भारतीय वायुसेना के भविष्य को लेकर एक नई दिशा में सोचा जा रहा है। हाल ही में अनमैन्ड फाइटर जेट्स (Unmanned Fighter Jets) को लेकर कुछ रोचक जानकारियां सामने आई हैं, जिससे यह साफ होता है कि आने वाले समय में भारतीय वायुसेना पूरी तरह से नए युग में प्रवेश करने जा रही है। यह विचार न केवल भारत के रक्षा क्षेत्र को मजबूती प्रदान करेगा बल्कि आर्थिक और रणनीतिक रूप से भी भारत को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा। इस पूरी योजना का मुख्य उद्देश्य पुराने एयरक्राफ्ट्स को बेहतर तरीके से उपयोग में लाना और उन्हें आधुनिक तकनीक से लैस करना है ताकि वे भविष्य के युद्धक्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

हाल ही में यह खबर सामने आई थी कि भारत के पुराने मिग-21 एयरक्राफ्ट्स को अनमैन्ड जेट्स में बदला जा सकता है। यह विचार अपने आप में बहुत आकर्षक लग सकता है, लेकिन इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी हैं। सबसे पहली समस्या यह है कि पुराने एयरक्राफ्ट्स को ड्रोन में बदलने की प्रक्रिया काफी जटिल (complicated) और महंगी (costly) होगी। इन एयरक्राफ्ट्स को डिजाइन ही इस प्रकार किया गया था कि वे पायलट द्वारा नियंत्रित किए जा सकें, और उन्हें अनमैन्ड जेट्स में बदलने के लिए व्यापक तकनीकी बदलाव करने होंगे। साथ ही, अगर इन बड़े एयरक्राफ्ट्स को कामकाजी ड्रोन में बदला जाता है, तो इससे युद्ध के दौरान बहुत ज्यादा नुकसान (collateral damage) होने की संभावना बनी रहती है। वर्तमान में, पूरी दुनिया प्रिसीजन गाइडेड म्यूनिशंस (precision-guided munitions) की ओर बढ़ रही है, जिनकी एक्यूरेसी (accuracy) लगातार बेहतर होती जा रही है और उनकी लागत भी पहले की तुलना में कम हो रही है।

जब हम इस मुद्दे को आर्थिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो यह विचार अधिक व्यावहारिक नहीं लगता। उदाहरण के लिए, अमेरिका का "मदर ऑफ ऑल बम्स" (Mother of All Bombs – MOAB) जिसे GBU-43B कहा जाता है, लगभग 22000 डॉलर में आता है, जबकि एक मिग-21 को ड्रोन में बदलने की लागत इससे कहीं अधिक होगी। ऐसे में इन एयरक्राफ्ट्स को युद्ध में ड्रोन की तरह उपयोग करना एक लाभदायक सौदा नहीं कहा जा सकता। हालांकि, कुछ लोगों का यह मानना है कि ये एयरक्राफ्ट्स अब 50 साल पुराने हो चुके हैं और इनकी कोई कीमत नहीं है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन एयरक्राफ्ट्स में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक्स, एवियोनिक्स (avionics) और अन्य उपयोगी उपकरणों को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना में ऐसे पुराने एयरक्राफ्ट्स के पुर्जे और अन्य घटकों के लिए एक सक्रिय बाजार मौजूद है, जहां इन्हें दोबारा उपयोग के लिए बेचा जाता है। एयरक्राफ्ट्स के एयरफ्रेम (airframe) को अक्सर कॉलेजों, यूनिवर्सिटीज़ और अन्य प्रशिक्षण केंद्रों में प्रदर्शन के लिए रखा जाता है।

हालांकि, इस समस्या का एक और समाधान भी सामने आया है, जो भारतीय वायुसेना के लिए एक नई संभावनाओं का द्वार खोल सकता है। हाल ही में HAL (Hindustan Aeronautics Limited) ने ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट (Optionally Manned Aircraft) का एक दिलचस्प प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के तहत पुराने एयरक्राफ्ट्स को पूरी तरह से ड्रोन में बदलने के बजाय, उन्हें ऐसा बनाया जाएगा कि वे मानव पायलट और अनमैन्ड मोड दोनों में ऑपरेट कर सकें। इस दिशा में पहला बड़ा कदम कैट्स ओमका (CATS OMCA - Combat Air Teaming System - Optionally Manned Combat Aircraft) द्वारा उठाया गया है, जिसका परीक्षण भी किया जा चुका है। इस एयरक्राफ्ट ने हाल ही में अपनी पहली उड़ान पूरी की है और इससे जुड़ी तस्वीरें भी सार्वजनिक की गई हैं।

कैट्स ओमका प्रोजेक्ट में एचएएल (HAL) का प्रस्ताव यह है कि भारतीय वायुसेना के पुराने एयरक्राफ्ट्स को मॉडिफाई करके ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट्स में बदला जाए। इस विचार के तहत, मिशन की जरूरत के अनुसार एयरक्राफ्ट को बिना पायलट के भी उड़ाया जा सकता है, जिससे युद्ध के दौरान किसी पायलट के खोने का खतरा पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। वर्तमान में, भारतीय वायुसेना के पास 87 किरण (Kiran) एयरक्राफ्ट्स हैं और भारतीय नौसेना के पास भी 20 यूनिट्स मौजूद हैं, जो कि कुल मिलाकर लगभग 100 एयरक्राफ्ट्स होते हैं। इसके अलावा, मौजूदा समय में भारतीय वायुसेना में कई मिग-21 और मिग-27 एयरक्राफ्ट्स को "मॉथबॉल" (Mothball - अस्थायी रूप से निष्क्रिय) करके रखा गया है। यदि इन सभी पुराने एयरक्राफ्ट्स को कैट्स ओमका प्रोजेक्ट के तहत ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट्स में बदला जाता है, तो इससे भारत को एक बड़ी सैन्य ताकत मिलेगी, जो कि भविष्य के युद्धक्षेत्र में बेहद उपयोगी साबित होगी।

इस तकनीक के सबसे बड़े फायदों में से एक यह होगा कि युद्ध के दौरान किसी मिशन को पूरा करने के लिए इन एयरक्राफ्ट्स को दुश्मन के एयरस्पेस में भेजा जा सकेगा, और यदि वहां से कोई खतरा सामने आता है, तो पायलट को नुकसान पहुंचने का कोई डर नहीं रहेगा। इसके अलावा, अगर भविष्य में तेजस (Tejas), तेजस मार्क-2 और आका (AMCA - Advanced Medium Combat Aircraft) जैसे एयरक्राफ्ट्स को शुरू से ही ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट्स के रूप में डिजाइन किया जाता है, तो यह भारतीय वायुसेना को और अधिक आधुनिक और शक्तिशाली बना देगा।

अगले कुछ वर्षों में, जब भारतीय वायुसेना के अन्य पुराने एयरक्राफ्ट्स भी रिटायर किए जाएंगे, तब उन्हें भी ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट्स में बदला जा सकता है। इससे न केवल पुराने एयरक्राफ्ट्स का सही तरीके से उपयोग हो पाएगा बल्कि भारतीय वायुसेना को भी अपनी स्क्वाड्रन स्ट्रेंथ (Squadron Strength) को बनाए रखने में मदद मिलेगी।

हालांकि, इस योजना को पूरी तरह से लागू करने से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि इन एयरक्राफ्ट्स को ऑप्शनली मैन मोड में बदलने के लिए आवश्यक तकनीकी बदलावों को किस प्रकार किया जाए। इसके अलावा, इनका उपयोग करने के लिए एक मजबूत नेटवर्क और एडवांस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम (Advanced Communication System) की भी जरूरत होगी ताकि इन्हें दूर से संचालित किया जा सके।

अगर भारत इस दिशा में तेजी से काम करता है और इसे सफलतापूर्वक लागू करता है, तो यह भारतीय रक्षा उद्योग और वायुसेना के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। यह परियोजना न केवल भारत की सैन्य शक्ति को बढ़ाएगी बल्कि देश को स्वदेशी रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित होगी।

इस प्रकार, अनमैन्ड जेट्स और ऑप्शनली मैन एयरक्राफ्ट्स का कॉन्सेप्ट भारत के लिए एक नई क्रांति लेकर आ सकता है। यह तकनीक भारतीय वायुसेना को अधिक लचीला, प्रभावी और आधुनिक बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि भविष्य के युद्धों में भारत के पास बेहतरीन तकनीकी बढ़त बनी रहे। भारत की यह नई सोच और नवाचार निश्चित रूप से भारतीय रक्षा प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाएगी और इसे वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दिलाएगी।

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