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Kerala Women |
केरल के कासरगोड जिले में पर्यावरण को बचाने के लिए ग्रामीण महिलाएं एक अनूठी पहल में जुटी हैं। वे न केवल अपने स्थानीय क्षेत्र की प्राकृतिक जैव विविधता (biodiversity) को संरक्षित करने का कार्य कर रही हैं, बल्कि नदी के तटीय इलाकों को सुधारने में भी योगदान दे रही हैं। यह महिलाएं चितार नदी के किनारे से उन पौधों को हटा रही हैं जो बाहरी (invasive species) हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के लिए खतरा बने हुए हैं। इनमें सबसे आम खरपतवार (weed) 'सिंगापुर डेज़ी' है, जो मूल रूप से इस क्षेत्र का नहीं है, लेकिन अब तेजी से फैल चुका है। इन महिलाओं की यह कोशिश है कि इस पौधे को पूरी तरह से हटाया जाए ताकि स्थानीय प्रजातियों (native species) को फिर से फलने-फूलने का मौका मिल सके।
इस कार्य में लगभग 100 महिलाएं शामिल हैं, जो साल में दो बार इकट्ठा होकर नदी के किनारों को साफ करने का काम करती हैं। इस पूरी परियोजना (project) को स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समिति (Biodiversity Management Committee) चला रही है, जिसमें प्रशासन और ग्रामीण प्रतिनिधि भी जुड़े हुए हैं। इस समिति का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नदी अपने पुराने प्राकृतिक स्वरूप में लौट सके। इस परियोजना के पहले चरण में, नदी किनारे उगने वाले घुसपैठिए पौधों को हटाया गया, क्योंकि ये न केवल अन्य पौधों के बढ़ने में बाधा डालते हैं बल्कि कुछ प्रजातियां तो अपने आसपास के अन्य पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले रसायन (chemicals) भी छोड़ती हैं। इन घुसपैठिए पौधों की वजह से क्षेत्र की जैव विविधता प्रभावित हो रही थी, जिससे न केवल स्थानीय पौधे बल्कि चिड़ियों और कीड़ों पर भी बुरा असर पड़ रहा था।
बर्ड वॉचर (bird watcher) श्याम कुमार का कहना है कि इस क्षेत्र में कई दुर्लभ पक्षी और जानवर रहते हैं, जिनका जीवन देसी पेड़ों और पौधों पर निर्भर है। इनमें हिरन और 'आईबीसी' जैसे दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं। इस इलाके में नारियल के घने बागान और मैंग्रोव जंगल (mangrove forests) भी हैं, लेकिन बावजूद इसके, यहां भूजल स्तर (groundwater level) में गिरावट देखी गई है। गर्मी के मौसम में चितार नदी का जल स्तर काफी कम हो जाता है और कई हिस्सों में पूरी तरह सूख भी जाती है। नदी के तटों का कटाव (erosion) भी एक बड़ी समस्या बन गया है।
परियोजना के शुरुआती चरण में जब पौधों को हटाया गया, तो मिट्टी और भी ज्यादा कमजोर हो गई, जिससे हालात और बिगड़ गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जब नदी की सफाई की जाती है तो लोग तटों पर उगे सभी पौधों को हटा देते हैं, लेकिन इससे तटीय इलाकों की मिट्टी अस्थिर (unstable) हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप मिट्टी बहने लगती है और कटाव की समस्या और गंभीर हो जाती है। इस समस्या को समझते हुए जैव विविधता समिति ने अपनी रणनीति बदली और देसी प्रजातियों के पौधे लगाने पर जोर दिया। यह इस परियोजना का दूसरा चरण था, जिसमें केवल उन्हीं पौधों को लगाया गया जो इस क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल हैं।
इस काम में सरकारी एग्रो सर्विस सेंटर (agro service center) भी मदद कर रहा है, जहां से सावधानीपूर्वक चयनित पौधों को उगाकर नदी तटों पर लगाया जा रहा है। यह परियोजना अपनी तरह का पहला प्रयास है और इसे राज्य सरकार से भी मंजूरी मिल चुकी है। सरकार ने इस परियोजना को 2025 के अंत तक जारी रखने का फैसला किया है। इस काम में नवीशा थु बीवी जैसी विशेषज्ञों की भी भूमिका रही है, जो पहले एक एग्रो सर्विस सेंटर की प्रमुख रह चुकी हैं। उनका कहना है कि इस परियोजना के पहले ही साल 70 प्रतिशत लगाए गए पौधे सफलतापूर्वक बढ़े हैं, जबकि इस क्षेत्र में इंसानों और जानवरों की आवाजाही काफी अधिक है।
इस परियोजना का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि नदी के किनारों पर लगाए गए नए पौधों के कारण मिट्टी को मजबूती मिली है। यहां लगाए गए पौधों की सिंचाई और देखभाल की जाती है, जिससे वे जल्दी विकसित हो रहे हैं और नदी के किनारों को स्थिर बना रहे हैं। हालांकि, शुरुआत में यह योजना चितार नदी के 18 किलोमीटर लंबे हिस्से पर लागू की जानी थी, लेकिन भूमि स्वामित्व (land ownership) से जुड़ी समस्याओं के कारण इसे घटाकर केवल 2 किलोमीटर तक सीमित कर दिया गया।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नदी के किनारे की सभी जमीन सरकारी नहीं है, बल्कि इनमें से कई हिस्से निजी जमीनों पर भी आते हैं। हालांकि, नदी का पानी सभी के लिए होता है, लेकिन उसके किनारे की जमीनें निजी स्वामित्व में होती हैं, जिससे बड़ी परियोजनाओं को लागू करना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए समिति स्थानीय जमींदारों को इस योजना से जोड़ने का प्रयास कर रही है ताकि वे भी इसके फायदों को समझ सकें।
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस परियोजना के सफल होने से उनके कुओं में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी, क्योंकि नदी तटों को दुरुस्त करने से भूजल स्तर में सुधार होगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले चार से पांच वर्षों में नए लगाए गए पेड़ इतने बड़े हो जाएंगे कि उनकी जड़ें नदी के तटों को स्थिर बनाए रखने में मदद करेंगी। समिति को उम्मीद है कि जब ये पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाएंगे, तो सभी लोग इस परियोजना के महत्व को समझेंगे और पर्यावरण संरक्षण (environment conservation) की इस मुहिम को आगे बढ़ाने में योगदान देंगे।
यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह दर्शाती है कि अगर स्थानीय समुदाय एकजुट होकर काम करें, तो वे अपनी प्राकृतिक धरोहर को बचा सकते हैं। महिलाओं की यह मुहिम यह भी साबित करती है कि छोटे-छोटे प्रयास मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं। इस परियोजना से न केवल चितार नदी का पुनर्जीवन हो रहा है, बल्कि यह पूरे केरल और देश के अन्य हिस्सों के लिए भी एक प्रेरणा बन रही है। जब तक स्थानीय स्तर पर लोग पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से भाग नहीं लेंगे, तब तक जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों को बचाना मुश्किल होगा। इसलिए, इस तरह की परियोजनाएं न केवल केरल के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण सबक हैं कि हम सभी को मिलकर अपने पर्यावरण को बचाने की दिशा में काम करना चाहिए।