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Most Mysterious Truth of Prayagraj Kumbh |
प्रयागराज का कुंभ पर्व अनंत आध्यात्मिक रहस्यों और भक्तिपूर्ण घटनाओं से भरा हुआ है। यह केवल एक तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का एक दिव्य अवसर भी है। एक ऐसी ही कथा, जो कुंभ के महत्व और भक्ति की शक्ति को उजागर करती है, वह है रानी की कथा, जिनकी आस्था और भक्ति ने उन्हें अगले जन्म में महान भक्त सवरी के रूप में जन्म लेने का वरदान दिलाया।
उस समय का कुंभ मेला अत्यंत भव्य था, जहां हर तरफ संत-महात्माओं के आश्रम स्थापित थे। कोई कथा वाचन में लीन था, कोई संकीर्तन कर रहा था, तो कोई साधु-संतों की सेवा में लगा हुआ था। आज के समय की तरह बिजली की चकाचौंध, माइक और लाउडस्पीकर का कोई अस्तित्व नहीं था, फिर भी श्रद्धालु पूरे समर्पण और भक्ति भाव से इन धार्मिक आयोजनों में शामिल हो रहे थे। इस धार्मिक वातावरण में एक रानी भी अपने पति राजा के साथ प्रयागराज आई थीं। उन्होंने राजा से आग्रह किया कि वे भी संतों के दर्शन करें, कथा सुनें और संकीर्तन में सम्मिलित होकर ईश्वर के नाम पर नृत्य करें।
राजा को यह विचार उचित तो लगा, लेकिन एक समस्या थी—रानी का समाज में विशिष्ट स्थान। एक रानी, जो समाज के नियमों से बंधी थी, वह इतनी भीड़ में कैसे सम्मिलित हो सकती थी? यह सोचकर राजा ने असमर्थता जताई, लेकिन रानी का संतों के दर्शन और सत्संग में शामिल होने का उत्साह अडिग था। उन्होंने सोचा कि अगर वे किसी निम्न कुल में जन्मी होतीं, तो बिना किसी रोक-टोक के कथा-कीर्तन का आनंद ले सकती थीं। यह सोचकर उनका मन व्यथित हो गया।
इस बीच, कुंभ पर्व के मुख्य स्नान का दिन आ गया, जो मौनी अमावस्या के दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। लाखों श्रद्धालु इस पावन अवसर पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करके पवित्र होने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। रानी ने राजा से आग्रह किया कि कम से कम उन्हें इस पवित्र जल में स्नान करने दिया जाए। पहले तो राजा ने मना कर दिया, क्योंकि इतनी भीड़ में रानी को स्नान कराना असंभव प्रतीत हो रहा था। लेकिन जब रानी का आग्रह बढ़ा, तो राजा ने उनके लिए विशेष व्यवस्था की।
संगम स्थल तक पहुंचने के लिए नौकाओं का एक पुल बनाया गया, दोनों ओर से पर्दे लगाए गए, ताकि कोई भी रानी को देख न सके। इस प्रकार, एक सुरक्षित मार्ग से रानी स्नान के लिए गईं। लेकिन जैसे ही वे संगम के गहरे जल में पहुंचीं, उनके हृदय में एक गहन संकल्प जागृत हुआ। उन्होंने यह संकल्प लिया कि अगले जन्म में वे किसी निम्न कुल में जन्म लेंगी, जहां उन्हें कोई रोक-टोक न होगी, और वे पूर्ण रूप से भक्ति में लीन रह सकेंगी। इस दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने वहीं जल समाधि ले ली।
इस महान संकल्प का फल अगले जन्म में उन्हें भक्ति मती सवरी के रूप में प्राप्त हुआ। वे एक शबर (वनवासी) जाति में जन्मीं, लेकिन उनकी भक्ति और प्रेम ने उन्हें श्रीराम के चरणों तक पहुंचा दिया। श्रीराम ने स्वयं सवरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया और उनके झूठे बेर प्रेमपूर्वक ग्रहण किए।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि तीर्थों की यात्रा केवल बाहरी स्नान तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करती है। प्रयागराज का कुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का द्वार भी है। यहां जो भी सच्चे मन से कुछ मांगता है, उसे अवश्य प्राप्त होता है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण किसी कुल, जाति या बाहरी परिस्थिति पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह व्यक्ति के आंतरिक प्रेम और विश्वास पर आधारित होता है।
(यह लेख प्रयागराज कुंभ के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को उजागर करता है और यह दर्शाता है कि भक्ति का मार्ग किसी भी सामाजिक बंधन से ऊपर होता है।)