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Netanyahu’s US Visit |
इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू फरवरी में अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं, जहां उनकी मुलाकात डोनाल्ड ट्रंप से होगी। इस मुलाकात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, खासतौर पर इस संदर्भ में कि गाजा पट्टी और हमास के खिलाफ भविष्य में इजराइल की क्या रणनीति होगी। इस पूरी स्थिति में ट्रंप की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि उन्होंने पहले ही जॉर्डन और इजिप्ट से आग्रह किया है कि वे फिलिस्तीनियों को अपने यहां शरण दें ताकि गाजा को पूरी तरह से खाली किया जा सके। यह साफ संकेत है कि इजराइल और अमेरिका मिलकर इस क्षेत्र में स्थायी समाधान की ओर बढ़ रहे हैं।
हमास के शीर्ष नेताओं में से एक अबू अतवी को इजराइली सेना ने मार गिराया है। यह वही व्यक्ति था जो पहले इजराइली हमलों के बाद खुशी मनाते हुए नजर आया था, लेकिन जब इजराइल ने जवाबी कार्रवाई शुरू की, तो यह छिप गया था। सीजफायर के दौरान जब उसने सोचा कि अब खतरा टल गया है और वह बाहर आया, तो इजराइली मिसाइलों ने उसे निशाना बना लिया। इस घटना से स्पष्ट होता है कि इजराइल की सेना हमास के किसी भी आतंकी को बख्शने के मूड में नहीं है। इजराइल के सैन्य अभियानों में लगातार यह देखा गया है कि वह न केवल हमास के ठिकानों को नष्ट कर रहा है, बल्कि उन आतंकियों को भी चुन-चुन कर मार रहा है जो अब तक छिपे हुए थे।
हमास द्वारा बंधकों को मारने की खबरें सामने आ रही हैं, जिससे इजराइल की जवाबी कार्रवाई और भी तेज हो गई है। इजराइल इस समय किसी भी तरह की नरमी दिखाने को तैयार नहीं है। ट्रंप भी इस पूरे मामले में इजराइल के समर्थन में नजर आ रहे हैं। हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने इजराइल को बमों की सप्लाई क्यों दी, तो उनका जवाब था – "क्योंकि उन्होंने इसके लिए भुगतान किया है।" इससे यह साफ हो जाता है कि ट्रंप इजराइल के हर फैसले के साथ खड़े हैं और अगर वह दोबारा सत्ता में आते हैं, तो इजराइल को और अधिक समर्थन मिलने की संभावना है।
फिलिस्तीनियों की स्थिति पर भी दुनिया भर में चर्चा हो रही है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मुस्लिम देश खुद इन्हें शरण देने को तैयार नहीं हैं। जॉर्डन और इजिप्ट ने साफ इनकार कर दिया है कि वे एक भी फिलिस्तीनी को अपने यहां नहीं लेंगे। यह अजीब विरोधाभास है कि जो देश फिलिस्तीन के समर्थन में बड़े-बड़े बयान देते हैं, वही जब शरण देने की बात आती है, तो पीछे हट जाते हैं। सऊदी अरब, तुर्की और अन्य मुस्लिम देश भी इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम उठाने के बजाय केवल बयानबाजी कर रहे हैं।
इतिहास भी इस बात का गवाह है कि फिलिस्तीनियों ने हमेशा उन्हें शरण देने वाले देशों के खिलाफ ही षड्यंत्र किए हैं। जॉर्डन में भी लाखों फिलिस्तीनी रहते हैं, लेकिन उन्होंने वहां की सरकार के खिलाफ साजिशें रचीं और शाही परिवार को हटाने की कोशिश की। यही वजह है कि अब कोई भी मुस्लिम देश इन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत, यूरोप और अमेरिका में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी शरण ले रहे हैं। यह सवाल उठता है कि अगर वे सच में अपनी आजादी के लिए लड़ रहे हैं, तो वे पड़ोसी मुस्लिम देशों में जाने के बजाय यूरोप और अमेरिका क्यों भाग रहे हैं?
हमास की असलियत अब पूरी दुनिया के सामने आ रही है। उनके शीर्ष नेता याहया सिनवार की मां का इलाज खुद इजराइल में हुआ था। यह बेहद विडंबनापूर्ण है कि जो लोग इजराइल के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं, वही अपने इलाज के लिए इजराइली अस्पतालों का सहारा लेते हैं। इजराइल में कई फिलिस्तीनी काम भी करते हैं और अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं, लेकिन जब मौका मिलता है, तो वे आतंकियों का समर्थन करने से पीछे नहीं हटते। यही वजह है कि इजराइल अब इस मुद्दे को पूरी तरह से खत्म करना चाहता है।
नेतनयाहू की अमेरिका यात्रा का मुख्य एजेंडा यही होगा कि गाजा को पूरी तरह से खाली करके इसे एक सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाए। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि इजराइल को पूरी गाजा पट्टी को अपने नियंत्रण में लेना चाहिए और वहां की सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए। अगर यह योजना लागू होती है, तो भविष्य में हमास का पूरी तरह सफाया हो सकता है। साथ ही, इजराइल यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई भी फिलिस्तीनी उसके क्षेत्र में दोबारा प्रवेश न कर सके।
अगर अंतरराष्ट्रीय कानून की बात करें, तो यह तय है कि इजराइल अपने देश की सुरक्षा के लिए जो भी कदम उठा रहा है, वह पूरी तरह जायज है। हमास को फिलिस्तीन की जनता ने खुद चुना था, इसलिए अब जब उसके कारण बर्बादी हो रही है, तो उसकी जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आती है। इजराइल के लिए यह लड़ाई केवल हमास के खिलाफ नहीं, बल्कि उस पूरे विचारधारा के खिलाफ है जो आतंकवाद को बढ़ावा देती है।
इजराइल अब धीरे-धीरे अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहता है, ताकि उसकी सुरक्षा और मजबूत हो सके। नेतनयाहू का मानना है कि इजराइल को अपनी सीमाएं बढ़ानी होंगी, ताकि भविष्य में कोई भी आतंकी संगठन उसे निशाना न बना सके। इसके लिए गाजा, वेस्ट बैंक और कुछ अन्य क्षेत्रों को इजराइल में मिलाने की योजना पर काम किया जा सकता है।
इजराइल-हमास संघर्ष से भारत को भी कुछ सबक लेने की जरूरत है। भारत लंबे समय से आतंकवाद से जूझ रहा है और पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लगातार हमलों को अंजाम देते रहे हैं। इजराइल की तरह भारत को भी अपने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नेतनयाहू की अमेरिका यात्रा से क्या निष्कर्ष निकलता है और क्या वाकई गाजा का भविष्य पूरी तरह बदलने वाला है। इजराइल इस बार कोई समझौता करने के मूड में नहीं दिख रहा और अगर ट्रंप भी दोबारा सत्ता में आते हैं, तो इस पूरे घटनाक्रम में एक नया मोड़ आ सकता है।