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'Islamic NATO' |
पाकिस्तान और बांग्लादेश के संभावित सैन्य गठबंधन को लेकर हाल ही में कई चर्चाएं हो रही हैं। इस मुद्दे पर पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित की टिप्पणी ने एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने सुझाव दिया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलकर एक साझा सेना (joint army) बनानी चाहिए, जो आगे चलकर एक इस्लामिक नाटो (NATO) की तरह काम करे। उनकी इस टिप्पणी ने भारतीय मीडिया और रक्षा विशेषज्ञों के बीच गंभीर चर्चाएं शुरू कर दी हैं।
अगर हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच के संबंध कभी भी पूरी तरह से सहज नहीं रहे हैं। 1971 में बांग्लादेश ने पाकिस्तान से आजादी ली थी, और उसके बाद से दोनों देशों के बीच कई बार कूटनीतिक और राजनीतिक तनातनी देखी गई है। हालांकि हाल के वर्षों में दोनों देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन अब्दुल बासित जैसे कुछ विश्लेषकों के बयान यह दिखाते हैं कि पाकिस्तान में अभी भी बांग्लादेश को लेकर एक अधूरा सपना पल रहा है।
अब्दुल बासित के बयान पर नजर डालें तो यह समझना मुश्किल नहीं कि यह एक अव्यवहारिक प्रस्ताव है। सबसे पहली बात यह कि बांग्लादेश और पाकिस्तान की सेनाओं की प्राथमिकताएं और रणनीतियां पूरी तरह से अलग हैं। बांग्लादेश ने अपने रक्षा नीति को हमेशा संतुलित रखा है और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संतुलन बनाए रखा है। वहीं, पाकिस्तान की सैन्य नीति हमेशा भारत विरोध पर केंद्रित रही है और वह अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को मुस्लिम देशों के रक्षक के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करता है।
इसके अलावा, इस्लामिक देशों का एक साझा सैन्य गठबंधन बनाने की बात कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई बार मुस्लिम देशों के एक सैन्य गठबंधन की कल्पना की गई है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ज्यादातर अमीर मुस्लिम देश, जैसे कि सऊदी अरब, यूएई, कतर और कुवैत, इस तरह के किसी भी गठबंधन में रुचि नहीं रखते। उनका झुकाव अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर ज्यादा होता है, जहां उनके व्यापारिक और कूटनीतिक हित जुड़े होते हैं। ऐसे में पाकिस्तान और बांग्लादेश का कोई संयुक्त सैन्य संगठन बनाना एक काल्पनिक विचार से ज्यादा कुछ नहीं।
अगर हम पाकिस्तान के हालिया आर्थिक हालातों को देखें, तो यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपने देश की सेना को ही सही ढंग से वित्तीय सहायता नहीं दे पा रहा है। उसके पास अपने सैनिकों के वेतन और सैन्य उपकरणों की खरीदारी के लिए पर्याप्त धन नहीं है। विश्व बैंक (World Bank) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से कर्ज लेने की नौबत बार-बार आ रही है। वहीं, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की तुलना में बेहतर स्थिति में है, लेकिन वह भी हाल ही में आईएमएफ से सहायता मांगने को मजबूर हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर दोनों देश एक संयुक्त सैन्य संगठन बनाएंगे तो उसका खर्च कौन उठाएगा?
अब्दुल बासित की इस अवधारणा में एक और बड़ी समस्या यह है कि बांग्लादेश की सरकार इस विचार का समर्थन करेगी या नहीं। मौजूदा बांग्लादेशी नेतृत्व की नीति भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की रही है। 1971 के युद्ध के दौरान भारत ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और आज भी दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा और सांस्कृतिक संबंध मजबूत बने हुए हैं। ऐसे में यह कहना कि बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ मिलकर कोई सैन्य गठबंधन बनाएगा, हकीकत से कोसों दूर है।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस्लामिक नाटो जैसा संगठन अगर बन भी जाता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होगा? नाटो (NATO) एक सैन्य गठबंधन है जिसमें अमेरिका और यूरोप के कई शक्तिशाली देश शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। लेकिन एक मुस्लिम सैन्य गठबंधन बनाने का उद्देश्य क्या होगा? क्या यह भारत के खिलाफ होगा? क्या यह पश्चिमी देशों के खिलाफ होगा? क्या यह आतंकवाद से लड़ने के लिए होगा? इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान जब भी किसी सैन्य गठबंधन की बात करता है, तो उसका उद्देश्य मुख्य रूप से भारत विरोध ही होता है। पाकिस्तान हमेशा से यह चाहता रहा है कि किसी भी तरीके से वह भारत के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन तैयार करे। लेकिन हकीकत यह है कि भारत की कूटनीतिक स्थिति और वैश्विक ताकत इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान का यह सपना कभी साकार नहीं हो सकता।
अगर बांग्लादेश और पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो दोनों देशों में आंतरिक अस्थिरता बढ़ रही है। पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है और आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। वहीं, बांग्लादेश में भी हाल ही में राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिली है। ऐसे में दोनों देशों के नेताओं को पहले अपने घरेलू मामलों को संभालना चाहिए, न कि किसी अव्यवहारिक सैन्य गठबंधन पर विचार करना चाहिए।
इस पूरे मामले पर भारतीय रक्षा विशेषज्ञों की भी प्रतिक्रिया आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का यह प्रस्ताव महज एक ख्याली पुलाव है, जिसकी कोई भी वास्तविकता नहीं है। भारत को इस पर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बांग्लादेश के साथ उसके संबंध मजबूत हैं और बांग्लादेश इस तरह की किसी भी योजना का हिस्सा नहीं बनेगा।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का यह प्रस्ताव न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह उसके हताशा का भी प्रतीक है। पाकिस्तान एक बार फिर से भारत विरोधी एजेंडा चलाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस बार भी उसे कोई सफलता नहीं मिलेगी। भारत को इस मुद्दे पर सतर्क रहने की जरूरत है, लेकिन चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बांग्लादेश अपनी स्वतंत्र नीति के तहत फैसले लेता है, और वह पाकिस्तान की किसी भी महत्वाकांक्षा का हिस्सा नहीं बनेगा।