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Poison in Yamuna? |
यमुना नदी का पानी जहरीला होने के आरोपों ने दिल्ली और हरियाणा के बीच राजनीतिक विवाद को बढ़ा दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह जानबूझकर यमुना नदी में अमोनिया (Ammonia) मिला रही है, जिससे दिल्ली को मिलने वाला पानी जहरीला हो रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) का दावा है कि दिल्ली में जल संकट के पीछे हरियाणा सरकार की साजिश है। यह आरोप ऐसे समय में लगाए जा रहे हैं जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो रही हैं।
दिल्ली की जलापूर्ति का 90% हिस्सा बाहरी राज्यों पर निर्भर करता है, जिसमें हरियाणा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। हरियाणा यमुना नदी के माध्यम से दिल्ली को पानी उपलब्ध कराता है, जबकि उत्तर प्रदेश गंगा नदी से और पंजाब भाखड़ा नंगल डैम से जल आपूर्ति करता है। हर साल गर्मियों में दिल्ली में पानी की भारी किल्लत होती है और यह समस्या कोई नई नहीं है। पिछले कई दशकों से दिल्ली और हरियाणा के बीच जल विवाद चला आ रहा है। 1995 में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिसके बाद 1996 में कोर्ट ने आदेश दिया कि हरियाणा को दिल्ली को अतिरिक्त 750 क्यूसेक पानी देना होगा। इसके बाद मुनक नहर का निर्माण किया गया, जो दिल्ली के जल आपूर्ति तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।
लेकिन हाल के दिनों में दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया है कि हरियाणा से आने वाले पानी में अमोनिया की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। अमोनिया एक जहरीली गैस है, जिसका उपयोग उर्वरक, कूलेंट, क्लीनिंग एजेंट और पेपर तथा प्लास्टिक उत्पादन में किया जाता है। इंडस्ट्रियल इकाइयों से निकलने वाले केमिकल और फार्मलैंड में इस्तेमाल होने वाले फर्टिलाइजर के कारण जल स्रोतों में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार, पीने के पानी में अमोनिया का स्तर 0.5 पीपीएम (Parts Per Million) से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन हाल ही में यमुना नदी के पानी में यह स्तर 8 पीपीएम तक पहुंच गया है, जो बेहद खतरनाक है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि पानी को शुद्ध करने के लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स में क्लोरीन (Chlorine) का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन 0.9 पीपीएम से ज्यादा अमोनिया को हटाने की क्षमता इन प्लांट्स में नहीं है। ऐसे में यदि यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है तो उसे पीने योग्य बनाना लगभग असंभव हो जाता है। क्लोरीन का उपयोग करने से पानी और अधिक कड़वा हो जाता है और इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है। एक लीटर पानी को शुद्ध करने के लिए लगभग 115 किलोग्राम क्लोरीन की जरूरत होती है, लेकिन अधिक मात्रा में क्लोरीन का उपयोग भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
यमुना नदी में प्रदूषण की समस्या कई वर्षों से बनी हुई है। दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही यमुना का पानी प्रदूषित हो जाता है, क्योंकि पानीपत और सोनीपत की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले रसायन नदी में गिरते हैं। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से बहने वाली सीवेज भी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। विंटर सीजन में जब नदी में पानी का प्रवाह कम होता है, तब प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अमोनिया की उच्च मात्रा के कारण जल स्रोतों में ऑक्सीजन लगभग समाप्त हो जाती है, जिससे जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को हो रहा है। दिल्ली और हरियाणा सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं, लेकिन समाधान की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है। दिल्ली सरकार ने यह दावा किया है कि वह जल्द ही एक नया वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करेगी, जो अमोनिया के उच्च स्तर को नियंत्रित करने में सक्षम होगा। हालांकि, इस योजना के पूरा होने में कितना समय लगेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
वर्तमान में जल संकट से निपटने के लिए पाइपलाइन सुधार और प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में काम करने की जरूरत है। कई बार पाइपलाइनों में लीकेज (Leakage) के कारण गंदे पानी की मिलावट हो जाती है, जिससे पानी की गुणवत्ता और अधिक खराब हो जाती है। दिल्ली सरकार का कहना है कि जल संकट के लिए हरियाणा जिम्मेदार है, जबकि हरियाणा सरकार का तर्क है कि वह अपने हिस्से का पानी पहले से ही दिल्ली को दे रही है और प्रदूषण के लिए सिर्फ उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इस पूरे विवाद में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या राजनीति के चलते जनता को साफ पानी से वंचित किया जा रहा है? क्या जल संकट की असली वजह राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति है? जब तक दोनों राज्य सरकारें मिलकर इस समस्या का समाधान नहीं निकालतीं, तब तक दिल्ली के लोगों को स्वच्छ पेयजल के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। पानी एक बुनियादी जरूरत है और इसे लेकर राजनीति करना किसी भी सरकार के लिए सही नहीं है। समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में दिल्ली को जल संकट का सामना न करना पड़े।