Why Did Ravan Get the Harshest Punishment? सच्चाई जानकर हैरान रह जाएंगे!

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Ravan Get the Harshest Punishment

 रावण का दहन हर साल पूरे देश में बड़े धूमधाम से किया जाता है, लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा कि रावण को ही इतना बड़ा दंड क्यों मिला, जबकि दुर्योधन, कंस, हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, रक्तबीज जैसे कई अन्य अत्याचारी भी हुए, जिन्हें उतना कठोर दंड नहीं दिया गया? क्या रावण का अपराध सबसे बड़ा था, या फिर कुछ और कारण थे? इस विषय पर गहराई से विचार किया जाए तो हमें यह समझ में आता है कि अपराध तो कई लोगों ने किए, लेकिन रावण के साथ विशेष मामला यह था कि वह एक अत्यंत ज्ञानी (knowledgeable) व्यक्ति था। इतिहास में जितने भी अत्याचारी हुए, उनमें से कोई भी रावण के बराबर का ज्ञानी नहीं था।

रावण के पास वेदों का ज्ञान था, वह शिव भक्त था, और उसने ब्रह्मा से कई वरदान प्राप्त किए थे। इतना सब कुछ जानने के बावजूद, जब उसने पराई स्त्री का हरण किया, तब समाज ने उसे सबसे बड़ा अपराधी ठहराया। किसी अज्ञानी द्वारा किया गया अपराध उतना घातक नहीं माना जाता जितना कि एक ज्ञानी व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध। रावण का ज्ञान ही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया। जब कोई ज्ञानी व्यक्ति सत्य को जानते हुए भी अधर्म का साथ देता है, तो उसका दंड सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक कठोर होता है।

दूसरी ओर, यदि हम बाली की बात करें, तो उसने भी अपने ही भाई की पत्नी को अपने पास रख लिया था, लेकिन समाज ने उसे उतनी कठोर सजा नहीं दी, जितनी कि रावण को मिली। दुर्योधन ने भी स्त्री का अपमान किया, द्रौपदी को भरी सभा में वस्त्रहीन करने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी उसके चरित्र को रावण से अलग देखा गया। यही नहीं, कंस ने भी अत्याचार किए, लेकिन उसका अंत रावण की तरह बदनामी भरा नहीं हुआ।

रावण की सबसे बड़ी सजा यही थी कि उसका नाम युगों-युगों तक अपमान और तिरस्कार का प्रतीक बना रहा। त्रेता युग की यह घटना कलयुग में भी जीवित है, और आज भी रावण के पुतले जलाए जाते हैं। यह केवल एक राजा की हार की कहानी नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि जब कोई अत्यधिक ज्ञानी व्यक्ति अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करता है, तो उसे अपमान के रूप में सबसे बड़ी सजा मिलती है। यही कारण था कि रावण को अन्य अपराधियों की तुलना में बहुत कठोर दंड मिला।

अब यह प्रश्न उठता है कि क्या केवल रावण ने ही पराई स्त्री का हरण किया था? इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहां स्त्रियों को अपमानित किया गया, लेकिन फिर भी समाज में केवल रावण को सबसे बड़ा अपराधी माना गया। इसका कारण यह था कि रावण केवल एक सामान्य राजा नहीं था, बल्कि वह अत्यंत विद्वान और महापंडित था। उससे यह उम्मीद की जाती थी कि वह धर्म का पालन करेगा। लेकिन जब वही धर्म का ज्ञाता अधर्म का मार्ग अपनाता है, तो उसका दंड भी उतना ही बड़ा होता है।

यह बात केवल रावण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के जीवन में लागू होती है। यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि झूठ बोलना पाप है, फिर भी वह झूठ बोलता है, तो उसका पाप अधिक होता है। यदि कोई यह जानता है कि निर्दोष जीवों की हत्या करना गलत है, फिर भी वह अपने स्वाद के लिए मांस खाता है, तो उसका दोष बढ़ जाता है। अगर कोई व्यक्ति यह जानता है कि शराब पीना गलत है, फिर भी वह शराब का सेवन करता है, तो उसे अधिक दंड मिलेगा। यही कारण है कि समाज में ज्ञानी व्यक्ति पर अधिक जिम्मेदारी होती है।

मनुष्य अपने कर्मों का फल अवश्य भोगता है। जो व्यक्ति यह कहता है कि उसकी किस्मत खराब है, वह यह भूल जाता है कि यह उसके ही पूर्व कर्मों का परिणाम है। कोई भी व्यक्ति न तो अपने भाग्य को दोष दे सकता है, न ही भगवान को, क्योंकि उसके द्वारा किए गए कर्म ही उसका भविष्य निर्धारित करते हैं।

राजा दशरथ का ही उदाहरण लें। जब श्रीराम को वनवास हुआ, तब पूरा अयोध्या रो पड़ी। राजा दशरथ स्वयं इस दुख को सहन नहीं कर सके और उनका निधन हो गया। लेकिन यह वनवास केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि यह उनके ही पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम था। जब राजा दशरथ ने अपने युवावस्था में एक भूलवश श्रवण कुमार के माता-पिता को उनके पुत्र से वंचित कर दिया था, तब उन्होंने श्राप दिया था कि एक दिन राजा दशरथ भी अपने पुत्र से बिछड़ने का दर्द सहेंगे। यही कारण था कि जब श्रीराम को वनवास जाना पड़ा, तब दशरथ जी का दुख असहनीय हो गया और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

कई बार हम अपने जीवन में किसी दूसरे को दुख पहुंचाते हैं और हमें उस समय यह एहसास भी नहीं होता कि हमारे किए गए कर्मों का फल हमें भविष्य में भोगना पड़ेगा। देवकी माता का ही उदाहरण लें। जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब जन्म लेते ही उन्हें माता-पिता से अलग कर दिया गया। यह केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि यह देवकी माता के पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम था। पिछले जन्म में वही देवकी माता कैकेयी थीं और उन्होंने श्रीराम को उनकी माता कौशल्या से दूर कर दिया था। इस जन्म में जब श्रीकृष्ण के रूप में उनका पुत्र आया, तो ईश्वर ने उन्हें भी उसी पीड़ा का अनुभव करवाया।

इसी प्रकार, यदि कोई बहू अपने पति को उसकी मां से दूर कर देती है, तो उसे यह समझना चाहिए कि भविष्य में उसके साथ भी ऐसा ही होगा। आजकल यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है कि कुछ महिलाएं अपने पति को उसकी माता से अलग कर देती हैं, बिना यह सोचे कि एक दिन उनकी संतान भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेगी। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को दुख पहुंचाता है, तो वह यह भूल जाता है कि समय का चक्र घूमता रहता है और ईश्वर का न्याय अटल होता है।

यही कारण है कि हमें हमेशा अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि हम जो भी कर्म कर रहे हैं, उसका परिणाम हमें अवश्य मिलेगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। जीवन में यदि कोई कठिनाई आती है, तो हमें भगवान को दोष नहीं देना चाहिए, बल्कि अपने कर्मों को सुधारने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

इसलिए, यदि आज भी रावण का दहन किया जाता है, तो यह केवल उसकी हार का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाने के लिए है कि ज्ञान के साथ जब अभिमान और अधर्म जुड़ जाता है, तो उसका परिणाम विनाशकारी होता है। यह केवल रावण की कहानी नहीं, बल्कि यह हर उस व्यक्ति की कहानी है जो अपने ज्ञान का उपयोग गलत मार्ग पर करता है। हमें रावण के दहन से यह सीख लेनी चाहिए कि सही मार्ग पर चलना ही हमें सच्ची शांति और सफलता दिला सकता है।

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