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Why Do Negative Thoughts Arise? |
मनुष्य के मन में न जाने कितने विचार आते हैं, कुछ अच्छे तो कुछ बुरे। कई बार यह नकारात्मक (negative) और अशुद्ध विचार हमारे मन को इतना प्रभावित कर देते हैं कि हम उनसे बाहर निकल ही नहीं पाते। यह विचार मन में इस तरह घूमते रहते हैं जैसे शरीर में कोई रोगाणु (virus) हमें अंदर से कमजोर कर रहे हों। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये बुरे और गलत विचार आते क्यों हैं? और क्या हम इनसे बच सकते हैं? अगर हां, तो कैसे? इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए प्रवक्ता ने बताया कि मन को शुद्ध करने के लिए हमें अपनी दिनचर्या और अपने परिवेश पर ध्यान देना आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि हमारे भीतर जो भी जाता है, वह हमारी सोच और विचारधारा को प्रभावित करता है। मुख्य रूप से तीन चीजें हमारे मन को शुद्ध या अशुद्ध करने का कार्य करती हैं—पहला आहार (food), दूसरा चित्र (visuals) और तीसरा विचार (thoughts)। सबसे पहले अगर आहार की बात करें, तो जो भी हम खाते हैं, वह केवल हमारे शरीर को ही नहीं बल्कि हमारे मन को भी प्रभावित करता है। यदि हमारा आहार सात्विक (pure) होगा, तो हमारा मन भी वैसा ही निर्मल रहेगा। लेकिन यदि हम मांसाहार (non-veg) या तामसिक (heavy) भोजन करते हैं, तो उसका प्रभाव हमारे स्वभाव और विचारों पर भी पड़ता है। आजकल के युवा अक्सर यह तर्क देते हैं कि वे स्वयं तो मांसाहार नहीं खाते, लेकिन उनके दोस्त या सहकर्मी खाते हैं, और वे उनके साथ बैठकर शाकाहारी (vegetarian) भोजन ग्रहण करते हैं। लेकिन यह भी उचित नहीं है क्योंकि भोजन की तरंगें (vibrations) भी हमारे भीतर प्रविष्ट होती हैं। इसलिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम किसके साथ और कहां भोजन कर रहे हैं।
इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है चित्र, यानी कि जो कुछ हम अपनी आंखों से देखते हैं। आजकल मनोरंजन के नाम पर टेलीविजन और सोशल मीडिया पर ऐसे दृश्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जो हमारे मन को दूषित कर सकते हैं। अधिकतर धारावाहिक (TV shows) और फिल्मों में नकारात्मकता, षड्यंत्र (conspiracy), धोखा, हिंसा (violence) और भौतिक सुख-सुविधाओं को प्रमुखता दी जाती है। जब हम इन्हें देखते हैं, तो अनजाने में ही हमारा मन भी उसी दिशा में बहने लगता है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि जैसा हम देखते हैं, वैसा ही हमारा मन और चरित्र (character) बनता है। यदि हम अच्छे चित्र देखेंगे, धार्मिक कथाएं और प्रेरणादायक (motivational) बातें सुनेंगे, तो हमारे विचार भी उसी अनुरूप हो जाएंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने देखने-सुनने की आदतों को सुधारें और सत्संग (spiritual discourses) को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है विचार। विचार ही हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं। हम दिनभर में न जाने कितने प्रकार के विचार अपने मन में उत्पन्न करते हैं—कई बार हम किसी के बारे में बिना वजह नकारात्मक सोचने लगते हैं, कई बार ईर्ष्या (jealousy) और अहंकार (ego) के विचार हमें घेर लेते हैं। लेकिन अगर हमें यह पता चल जाए कि हमारे मन में क्या चल रहा है और दूसरों को भी यह पता लग जाए, तो शायद समाज में बहुत अधिक अशांति फैल जाएगी। मनुष्य बाहरी रूप से एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम दिखाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर वे एक-दूसरे के प्रति कई तरह के नकारात्मक विचार रखते हैं। यही विचार धीरे-धीरे हमारे स्वभाव और व्यवहार का हिस्सा बन जाते हैं। इसलिए विचारों की शुद्धता (purity) बनाए रखना बहुत जरूरी है।
अब सवाल यह उठता है कि यदि हमारे मन में पहले से ही बुरे विचार आ चुके हैं, तो उन्हें दूर कैसे किया जाए? इसका उत्तर है—सत्संग और कीर्तन (spiritual chanting)। जिस प्रकार किसी स्थान को स्वच्छ करने के लिए सैनिटाइजर (sanitizer) का उपयोग किया जाता है, ठीक उसी प्रकार मन को शुद्ध करने के लिए भी हमें एक प्रकार का मानसिक सैनिटाइजर चाहिए। यह सैनिटाइजर है सत्संग और भगवन्नाम का कीर्तन। जब हम सत्संग में भाग लेते हैं, तो हमारे मन की गंदगी धीरे-धीरे दूर होने लगती है। यह ठीक उसी प्रकार कार्य करता है, जैसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढ़ाने के लिए बूस्टर डोज (booster dose) दिया जाता है। यदि हम नियमित रूप से सत्संग और भगवन्नाम का कीर्तन करते हैं, तो यह हमारे मन को धीरे-धीरे शुद्ध कर देता है।
महापुरुषों ने बताया है कि भगवान के नाम में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी पाप को समाप्त कर सकता है। चाहे मनुष्य ने कितना भी बड़ा पाप किया हो, लेकिन यदि वह सच्चे मन से भगवान के नाम का जाप करे, तो उसके सारे पाप नष्ट हो सकते हैं। भगवान का नाम एक ऐसी शक्ति है, जो व्यक्ति को पूरी तरह से बदल सकती है। यह कहा भी गया है कि—"हरे नाम, हरे नाम, हरे नाम केवलम्" अर्थात् इस कलियुग में केवल भगवान का नाम ही हमारा उद्धार कर सकता है। जब मनुष्य की बुद्धि अशुद्ध हो जाती है, तो उसे कोई भी अच्छी बात समझ में नहीं आती, लेकिन यदि वह ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाए, तो उसकी आत्मा निर्मल हो जाती है।
इसलिए, यदि हमें अपने जीवन को सफल और शुद्ध बनाना है, तो हमें अपने आहार, अपने देखने-सुनने की आदतों और अपने विचारों पर नियंत्रण रखना होगा। हमें नियमित रूप से सत्संग और भगवन्नाम का जाप करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो न केवल हमारे विचार शुद्ध होंगे, बल्कि हमारा संपूर्ण जीवन सकारात्मकता (positivity) से भर जाएगा। भगवान के नाम का जाप करने से हमारी आत्मा को शांति मिलती है और हमें अपने जीवन का सही उद्देश्य समझ में आता है। जीवन का वास्तविक आनंद भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति (inner peace) में है, और यह शांति हमें केवल भगवद्भक्ति (devotion) से ही प्राप्त हो सकती है।