Burning Waste in Delhi: जहरीली हवा से लाखों की जान खतरे में?

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Burning Waste in Delhi

 दिल्ली में बढ़ते कचरे की समस्या से निपटने के लिए शहर में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट लगाए गए हैं, जहां कचरा जलाकर बिजली बनाई जाती है। यह सुनने में एक शानदार और टिकाऊ (sustainable) समाधान लगता है, लेकिन वास्तविकता में यह लोगों के लिए एक नई मुसीबत बनता जा रहा है। दक्षिणी दिल्ली के जसोला विहार में रहने वाले देवकुमार बंसल के घर से कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित तिमारपुर-ओखला वेस्ट इंसीनरेशन प्लांट इसी तरह का एक उदाहरण है। इस प्लांट में हर दिन लगभग 2000 टन कचरा जलाया जाता है, लेकिन इसके दुष्परिणाम आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। इस विषय पर खोजी पत्रकार मारिया अबी हबीब ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें आईआईटी और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की चार साल की रिसर्च का उल्लेख किया गया है। इस रिसर्च के अनुसार, इस प्लांट के आसपास की मिट्टी और हवा में भारी मात्रा में जहरीले तत्व पाए गए हैं, जो अन्य रिहायशी इलाकों की तुलना में कहीं अधिक हैं। इन तत्वों में कैडमियम, मैंगनीज, आर्सेनिक, लेड और कोबाल्ट शामिल हैं, जिनका लंबे समय तक संपर्क में रहना गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।

सुखदेव विहार इलाके में रहने वाली गायनेकोलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) डॉक्टर मिश्रा का कहना है कि जब से यह प्लांट शुरू हुआ है, तब से मिसकैरेज (गर्भपात) के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। यही नहीं, इस इलाके में सांस संबंधी बीमारियों, कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के मामलों में भी इजाफा हुआ है। करीब 10 लाख लोग इस प्लांट के प्रत्यक्ष प्रभाव में आते हैं, और लगातार जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। तिमारपुर-ओखला प्लांट दिल्ली सरकार और जिंदल अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की एक संयुक्त परियोजना है। इस प्लांट पर नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) और दिल्ली पोल्यूशन कंट्रोल कमेटी (DPCC) द्वारा कई बार जुर्माना लगाया जा चुका है, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है। बल्कि, जब न्यूयॉर्क टाइम्स में इस विषय पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तो प्लांट के मैनेजमेंट ने एक बयान जारी कर खुद को निर्दोष बताया और दावा किया कि वे सभी पर्यावरणीय मानकों का पालन कर रहे हैं। हालांकि, जब कंपनी और अधिकारियों से इस पर बात करने की कोशिश की गई, तो कोई जवाब नहीं मिला।

इस मामले में एक्टिविस्ट भवन कंधारी का कहना है कि दिल्ली में वेस्ट इंसीनरेशन प्लांट को बंद करने की जरूरत है। उनका मानना है कि सही ढंग से अलग किए बिना कचरा जलाने से यह और भी ज्यादा हानिकारक हो जाता है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन) के नियमों के अनुसार, कचरे को अलग-अलग श्रेणियों में बांटना जरूरी है, ताकि केवल 2-3% हिस्सा ही जलाने की जरूरत पड़े। लेकिन दिल्ली के प्लांट में ऐसा नहीं किया जाता, जिससे प्रदूषण और अधिक बढ़ जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्लांट के संचालन में लगातार पर्यावरणीय उल्लंघन किए जा रहे हैं और सुरक्षा उपायों की अनदेखी की जा रही है। 2021 की एक फुटेज से यह भी साबित होता है कि प्लांट की फ्लाई एश (राख) को बिना किसी सुरक्षा उपायों के रिहायशी इलाकों के पास डंप किया जा रहा था। यह राख जहरीले धातुओं से भरपूर होती है, जिसे कबाड़ इकट्ठा करने वाले लोग चंद पैसों के लिए बेच देते हैं, लेकिन इससे उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है।

चार साल बीतने के बाद भी इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकला है। प्लांट से निकलने वाली राख खुले ट्रकों में भरकर दिल्ली की सड़कों पर ले जाई जाती है, जिससे सड़क पर चलने वाले लोगों को जहरीली धूल का सामना करना पड़ता है। सुबह-सुबह ऑफिस जाने वाले लोग, स्कूल जाने वाले बच्चे और सड़क पर काम करने वाले मजदूर इस प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि दिल्ली में इस तरह के वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट न केवल प्रदूषण को कम करने में असफल रहे हैं, बल्कि शहर के पहले से ही गंभीर वायु प्रदूषण को और भी बढ़ा रहे हैं।

दिल्ली में हर दिन हजारों टन कचरा पैदा होता है, और इसके प्रबंधन के लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता है। हालांकि, वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट को एक पर्यावरण के अनुकूल समाधान माना जाता है, लेकिन जब तक कचरे को सही ढंग से छांटा नहीं जाता और जलाने की प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक यह समाधान नहीं बल्कि समस्या बन जाता है। इसके अलावा, जिंदल अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां इस प्लांट से अंतरराष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट मार्केट (Carbon Credit Market) में पैसे कमा रही हैं, जिससे इन कंपनियों को वित्तीय लाभ तो हो रहा है, लेकिन इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।

पर्यावरण संगठनों का कहना है कि इस तरह के प्लांट्स का संचालन बंद कर के अधिक टिकाऊ और सुरक्षित विकल्पों की ओर बढ़ना चाहिए। रिसाइक्लिंग (Recycling), अपसाइक्लिंग (Upcycling) और खाद बनाने जैसी तकनीकों को अपनाकर कचरे को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है। लेकिन जब तक प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक दिल्ली के लोग इस जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर रहेंगे। इस समस्या का समाधान केवल कचरे को जलाने में नहीं, बल्कि सही प्रबंधन में है, ताकि लोगों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से बचाया जा सके और दिल्ली को एक साफ और सुरक्षित शहर बनाया जा सके।

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