Chennai Residents Transformed a Polluted Lake: चौंकाने वाली कहानी

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Chennai Residents Transformed a Polluted Lake

 चेन्नई शहर, जिसे झीलों और जल स्रोतों के लिए कभी जाना जाता था, आज प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण अपनी कई जल संरचनाओं को खो चुका है। लेकिन चितलापक्कम झील की कहानी इस सच्चाई से अलग है। यह कहानी उन लोगों की है जिन्होंने अपनी झील को बचाने के लिए न केवल मेहनत की, बल्कि इसे पूरी तरह पुनर्जीवित भी कर दिया। पांच साल पहले यह झील इतनी गंदी थी कि कोई इसके पास खड़ा भी नहीं हो सकता था। झील में 20 फुट ऊँचा और 20 फुट गहरा कचरे का ढेर था, जो लगभग चार एकड़ तक फैला हुआ था। बदबू इतनी भयानक थी कि लोग इस इलाके से गुजरने से भी कतराते थे। लेकिन आज, यह झील लोगों के लिए शुद्ध जल का स्रोत बन चुकी है, जहां न केवल इंसान, बल्कि पक्षी और अन्य जीव-जंतु भी निर्भय होकर आ सकते हैं।

चितलापक्कम झील के पुनर्जीवन की शुरुआत कुछ वॉलंटियर्स (स्वयंसेवकों) के एक छोटे से समूह ने की थी, जिन्हें पर्यावरण को बचाने की गहरी प्रेरणा थी। जब उन्होंने इस कार्य की शुरुआत की, तब झील की स्थिति बेहद दयनीय थी, लेकिन उन्होंने इसे सुधारने का संकल्प लिया। स्थानीय लोगों और सरकार के सहयोग से वे इस झील को पुनर्जीवित करने में सफल रहे। इस पहल की शुरुआत 2013 में मात्र तीन लोगों ने की थी, लेकिन 2019 तक यह एक बड़ा अभियान बन गया, जिसमें 1500 लोग शामिल हुए। नागरिकों द्वारा चलाए गए इस आंदोलन को और अधिक गति देने के लिए सरकार ने भी इसमें रुचि दिखाई और 25 लाख यूरो की सहायता दी। इसके बाद इस झील की स्थिति में सुधार होने लगा और अब यह स्वच्छ जल से भरी एक सुंदर झील बन चुकी है।

इस परियोजना में "4D" पद्धति का उपयोग किया गया, जिसमें डिफ्लेक्ट (Deflect), ड्रेन (Drain), डिल्ट (Dredge) और डीप (Deep) शामिल थे। सबसे पहला कदम था "डिफ्लेक्ट", जिसके अंतर्गत झील को ड्रेनेज सिस्टम से बचाने के लिए एक बफर वॉल (संरक्षक दीवार) बनाई गई। इसके बाद, झील को एक नई ड्रेनेज नहर से जोड़ा गया ताकि इसमें गंदा पानी प्रवेश न कर सके। तीसरे चरण में, झील को पूरी तरह सुखाकर उसमें से गंदगी और प्लास्टिक कचरा हटाया गया। यह एक कठिन और श्रमसाध्य प्रक्रिया थी क्योंकि झील के तल में गंदगी की मोटी परत जमी हुई थी। इसे हटाने के लिए कई फीट तक खुदाई की गई। इस प्रक्रिया के माध्यम से झील को चार से आठ फुट तक गहरा किया गया, जिससे इसकी जल धारण क्षमता बढ़ गई। इससे भूजल स्तर (Groundwater Level) को भी काफी बढ़ावा मिला, जो इस परियोजना का एक सकारात्मक परिणाम था।

चितलापक्कम झील की सफलता ने अन्य जल निकायों के लिए भी प्रेरणा का काम किया। लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित ननमंगलम झील भी चितलापक्कम झील की ही तरह गंदगी और प्रदूषण का शिकार हो रही थी। यहां भी स्थानीय लोगों ने अपनी झील को बचाने का बीड़ा उठाया और सफाई अभियान शुरू किया। करीब 13 हफ्ते पहले इस झील की सफाई प्रक्रिया शुरू हुई थी। दस साल पहले ननमंगलम झील का पानी इतना स्वच्छ था कि इसका उपयोग पीने के लिए किया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में शहर के विस्तार और अंधाधुंध निर्माण के कारण यह झील एक गंदे नाले में तब्दील हो गई थी। इस झील का पानी इतना प्रदूषित हो गया था कि वहां खड़ा होना भी मुश्किल हो गया था। लेकिन सफाई अभियान के चलते धीरे-धीरे स्थिति में सुधार आया और अब यहां से बदबू भी कम हो गई है। यह इस अभियान के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

यह पहल यह साबित करती है कि यदि स्थानीय लोग अपनी प्राकृतिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए आगे आएं, तो सरकार भी उनका पूरा सहयोग देने के लिए तैयार होती है। पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं, बल्कि नागरिकों की भी होती है। यदि लोग ठान लें कि वे अपने आस-पास की झीलों, तालाबों और नदियों को बचाएंगे, तो जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। चेन्नई की बढ़ती आबादी के मद्देनजर, आने वाली पीढ़ियों के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है। इसलिए, झीलों को पुनर्जीवित करने का यह कार्य केवल एक अभियान नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

चितलापक्कम और ननमंगलम झीलों का यह उदाहरण उन सभी शहरों और कस्बों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है, जहां जल संकट बढ़ता जा रहा है। यह दिखाता है कि अगर लोग एकजुट होकर काम करें, तो किसी भी असंभव लगने वाली चुनौती को पार किया जा सकता है। जल ही जीवन है, और इसे बचाने की दिशा में किए गए हर छोटे से छोटे प्रयास का भी बहुत बड़ा महत्व है। चेन्नई के नागरिकों ने यह साबित कर दिया कि बदलाव संभव है, बशर्ते हम अपनी जिम्मेदारी को समझें और उसके लिए कदम उठाएं।

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