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China’s Mega Plan! |
हाल ही में दुनिया के अंदर एक नई चिंता उभरकर सामने आई है जो पूरी वैश्विक राजनीति को हिला सकती है। यह चिंता सीधे तौर पर चीन से जुड़ी हुई है, जो लगातार अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रहा है। पूरी दुनिया के तमाम देश अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए हैं, लेकिन चीन अब एक ऐसा कदम उठा रहा है जो सीधे अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देता हुआ दिख रहा है। हाल ही में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा मिलिट्री कमांड सेंटर बनाने की योजना बनाई है, जिसे "सुपर पेंटागन" के नाम से जाना जा रहा है। यह मिलिट्री सेंटर अमेरिकी पेंटागन से भी 10 गुना बड़ा होगा और इसे पूरी तरह से युद्ध के हालातों के अनुकूल बनाया जाएगा। यह खबर सामने आते ही पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया है क्योंकि इससे यह स्पष्ट होता है कि चीन अपनी सैन्य शक्ति को अभूतपूर्व स्तर पर ले जाने की तैयारी में है।
अगर हम अब तक की सबसे बड़ी डिफेंस बिल्डिंग की बात करें, तो अमेरिकी पेंटागन का नाम सबसे पहले आता है। यह बिल्डिंग अमेरिका की रक्षा व्यवस्था का केंद्र मानी जाती है और यह पूरे विश्व के सबसे सुरक्षित भवनों में से एक है। लेकिन चीन अब इससे भी बड़ा और आधुनिक रक्षा मुख्यालय बना रहा है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने इस बिल्डिंग के निर्माण की प्रक्रिया तेज कर दी है और जल्द ही यह तैयार हो सकती है। यह बिल्डिंग चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के शीर्ष सैन्य अधिकारियों और नेताओं के लिए बनाई जा रही है, ताकि किसी भी युद्ध की स्थिति में वे पूरी तरह सुरक्षित रहकर फैसले ले सकें और युद्ध का संचालन कर सकें। चीन का यह कदम वैश्विक रणनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चीन का मुख्य उद्देश्य ताइवान पर कब्जा करना है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका हमेशा से ताइवान का समर्थन करता रहा है। अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो उसे अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के खिलाफ भी खड़ा होना पड़ेगा। ऐसे में चीन ने पहले से ही अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस सुपर पेंटागन की मदद से चीन अपने सैन्य संचालन को अधिक संगठित कर सकेगा और किसी भी हमले की स्थिति में अपने नेताओं और सैन्य अधिकारियों को पूरी तरह से सुरक्षित रख पाएगा।
अगर इतिहास की ओर देखें तो अमेरिकी पेंटागन का निर्माण 1941 में शुरू हुआ था और 1943 में इसे पूरा कर लिया गया था। यह अब तक की सबसे बड़ी सैन्य कमांड बिल्डिंग थी, लेकिन अब चीन इसे भी पीछे छोड़ने की तैयारी में है। चीन का यह कदम वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल सकता है। अगर चीन इस योजना को सफलतापूर्वक पूरा कर लेता है, तो इसका प्रभाव सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व पर पड़ेगा।
चीन केवल सैन्य क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी अमेरिका को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में चीन ने "डीपसीक" (DeepSeek) नामक अपना खुद का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चैटबॉट लॉन्च किया, जो सीधे तौर पर OpenAI के ChatGPT को टक्कर देने के लिए बनाया गया है। इस कदम ने भी पूरे टेक्नोलॉजी जगत को चौंका दिया। इससे पहले भी चीन ने आर्टिफिशियल सूर्य बनाने की योजना बनाई थी, जो एक तरह से चीन की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। इसके अलावा, चीन ने क्रिप्टोकरंसी माइनिंग के क्षेत्र में भी अपनी पकड़ मजबूत बना रखी है और वह दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टो माइनिंग अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
अगर हम न्यूक्लियर शक्ति की बात करें तो चीन फिलहाल अमेरिका और रूस से काफी पीछे है। वर्तमान में चीन के पास लगभग 500 न्यूक्लियर वॉरहेड्स हैं, जबकि अमेरिका के पास 3708 और रूस के पास 4380 न्यूक्लियर वॉरहेड्स हैं। हालांकि, चीन की योजना 2035 तक अपने न्यूक्लियर वॉरहेड्स की संख्या 1500 तक बढ़ाने की है। अगर चीन इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है, तो वह सीधे तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों में शामिल हो जाएगा। चीन का यह सैन्य विस्तार पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है, खासकर अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए।
इतिहास में देखा गया है कि सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति का सीधा संबंध होता है। जो देश आर्थिक रूप से मजबूत होता है, वही अपनी सैन्य शक्ति को भी मजबूत बना सकता है। चीन पहले ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और वह लगातार अमेरिका को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा है। चीन की नई सैन्य योजनाएं और टेक्नोलॉजी में बढ़त इस बात का संकेत देती हैं कि आने वाले वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच शक्ति संतुलन को लेकर संघर्ष और बढ़ सकता है।
इस पूरे परिदृश्य को देखते हुए, भारत के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण समय है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी सुरक्षा को और अधिक मजबूत बनाए और किसी भी संभावित खतरे के लिए तैयार रहे। भारत भी अपने रक्षा क्षेत्र में तेजी से निवेश कर रहा है और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। भारत को इस नई वैश्विक दौड़ में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए अपने सैन्य और तकनीकी क्षमताओं को और अधिक विकसित करना होगा।
चीन की यह योजना केवल एक सैन्य कदम नहीं है, बल्कि यह पूरी वैश्विक राजनीति को प्रभावित करने वाला एक बड़ा बदलाव हो सकता है। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन इस सुपर पेंटागन प्रोजेक्ट को कितनी तेजी से पूरा करता है और इसका दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन इतना तय है कि चीन अब केवल एक उभरती शक्ति नहीं रहा, बल्कि वह दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।