Indian Society on the Verge of Collapse? सच्चाई चौंका देगी!

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Indian Society on the Verge of Collapse

 भारत का समाज एक गहरे संकट से गुजर रहा है, जहां नैतिकता (morality), संस्कृति, और सामाजिक मूल्यों की धीरे-धीरे गिरावट हो रही है। आज की पीढ़ी एक ऐसे दौर में जी रही है जहां मनोरंजन और सोशल मीडिया ने असल मुद्दों से ध्यान भटका दिया है। समाज में कई ऐसे तत्व मौजूद हैं जो न केवल लोगों को भटकाने का काम कर रहे हैं बल्कि नई पीढ़ी को एक गलत दिशा में धकेल रहे हैं। हाल ही में एक मशहूर यूट्यूब शो "इंडिया गॉट लेटेंट" के विवाद को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। इसमें खासतौर पर रणवीर इलाहाबादी द्वारा की गई टिप्पणियों ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। समाज में ऐसे कंटेंट को बढ़ावा मिलना और उसका बड़े स्तर पर स्वीकृति पाना इस बात का संकेत है कि हम किस ओर बढ़ रहे हैं।

आज समाज में नैतिकता का पतन इस हद तक हो चुका है कि लोग कुछ भी बोलने और करने के लिए स्वतंत्र महसूस करते हैं, चाहे वह गलत हो या सही। एक समय था जब भारतीय संस्कृति अपने आदर्शों के लिए जानी जाती थी। परिवारों में बच्चों को सही और गलत का भेद बचपन से सिखाया जाता था। लेकिन आज का समाज पूरी तरह से बदल चुका है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर चलने वाले ट्रेंड्स ने नई पीढ़ी को केवल बाहरी दिखावे तक सीमित कर दिया है। लोग फेमस होने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो समाज को पतन की ओर ले जा रही है।

फिल्मों और मनोरंजन उद्योग का भी समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज की फिल्मों में न तो कोई मजबूत संदेश होता है और न ही कोई सामाजिक सीख। सिर्फ हिंसा, ग्लैमर और दिखावे को ही बढ़ावा दिया जाता है। 'एनिमल' जैसी फिल्मों में नायक-नायिकाओं को सिर्फ शरीर दिखाने और बेवजह के हिंसात्मक सीन करने के लिए ही रखा जाता है। इसके बावजूद ऐसी फिल्में सुपरहिट होती हैं और समाज में एक नई मानसिकता को जन्म देती हैं। युवा वर्ग ऐसे कंटेंट से प्रभावित होकर उसे वास्तविक जीवन में अपनाने लगते हैं। यही कारण है कि समाज में अपराध दर बढ़ रही है, सुसाइड केस बढ़ रहे हैं और मानसिक तनाव की समस्या गंभीर होती जा रही है।

शिक्षा प्रणाली की बात करें तो यह भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुकी है। स्कूल और कॉलेज अब ज्ञान बांटने के स्थान पर केवल पैसे कमाने के अड्डे बन चुके हैं। शिक्षकों का सम्मान घट रहा है और छात्र भी शिक्षा के महत्व को नहीं समझ रहे हैं। माता-पिता बच्चों की शिक्षा के लिए मोटी रकम चुका रहे हैं, लेकिन बदले में उन्हें क्या मिल रहा है? केवल डिग्री, न कि असली ज्ञान। युवाओं को आज महान वैज्ञानिकों, इतिहासकारों या विचारकों की बजाय इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स और विवादित यूट्यूबर्स में ज्यादा रुचि है। उन्हें यह भी नहीं पता कि 26 जनवरी क्यों मनाई जाती है, लेकिन वे यह जरूर जानते हैं कि कौन सा सेलेब्रिटी किसके साथ रिलेशनशिप में है।

सरकारें भी इस गिरावट को रोकने में नाकाम साबित हो रही हैं। हर चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन धरातल पर बदलाव नजर नहीं आता। स्वास्थ्य सेवाएं बदतर होती जा रही हैं, सरकारी अस्पतालों में गरीबों के साथ भेदभाव किया जाता है, और निजी अस्पतालों में इलाज इतना महंगा है कि आम आदमी वहां जाने की हिम्मत भी नहीं कर सकता। दवाइयों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और गरीब तबका इलाज के अभाव में दम तोड़ रहा है। इसके बावजूद सरकारें केवल दिखावे के विकास कार्यों में व्यस्त हैं।

पर्यावरण को लेकर भी हमारा रवैया बेहद लापरवाह है। भारत आज डायबिटीज कैपिटल बन चुका है, कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है, और प्रदूषण अपने चरम पर है। लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। हम हर चीज के लिए पॉपुलेशन को दोष देते हैं, लेकिन क्या हमने कभी खुद के कर्तव्यों पर विचार किया है? कूड़ा-कचरा फैलाना, पानी बर्बाद करना, और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना हमारी आम आदत बन चुकी है। हम सिर्फ यह सोचते हैं कि सरकार इस समस्या को हल करे, लेकिन समाज के रूप में हमारी खुद की जिम्मेदारी क्या है?

इंटरनेट और डिजिटल मीडिया ने जहां एक ओर लोगों को सूचना का आसान साधन दिया है, वहीं दूसरी ओर इसने कई सामाजिक विकृतियों को भी जन्म दिया है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर चाइल्ड पोर्न, हिंसा, और नफरत फैलाने वाले कंटेंट की भरमार है। इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर ऐसा कंटेंट तेजी से वायरल होता है, जो युवाओं को भटकाने का काम करता है। यह एक खतरनाक संकेत है क्योंकि इससे समाज का नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। जो चीजें पहले शर्मनाक मानी जाती थीं, वे आज सामान्य लगने लगी हैं। इसका सीधा असर हमारे विचारों और मूल्यों पर पड़ रहा है।

धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की बात करें तो आज हर कोई धर्म के नाम पर लड़ रहा है, लेकिन असल में धर्म का सार किसी को नहीं पता। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—हर धर्म शांति और भाईचारे की सीख देता है, लेकिन हम उसी धर्म के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। यही कारण है कि आज समाज में नफरत और भेदभाव बढ़ते जा रहे हैं।

आज जरूरत है कि समाज को फिर से नैतिकता और मूल्यों की ओर मोड़ा जाए। हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? क्या हम एक सभ्य और प्रगतिशील समाज बना रहे हैं, या सिर्फ बाहरी दिखावे और फालतू के मनोरंजन में उलझे हुए हैं? जब तक हम खुद नहीं सुधरेंगे, तब तक समाज नहीं सुधरेगा। बदलाव की शुरुआत हमें खुद से करनी होगी। हम जो कंटेंट देख रहे हैं, जो आदतें अपना रहे हैं, जो चीजें स्वीकार कर रहे हैं, वे ही हमारे भविष्य को तय करेंगी।

अगर हम ऐसे ही चलते रहे, तो 2050 तक न केवल हमारा समाज बल्कि पूरी पृथ्वी रहने योग्य नहीं बचेगी। बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हमें विनाश की ओर धकेल रहा है। जब तक हम नैतिकता, शिक्षा, और पर्यावरण की रक्षा को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक सुधार असंभव है। समय आ गया है कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें और एक बेहतर समाज की ओर कदम बढ़ाएं। परिवर्तन केवल सरकारों या कुछ लोगों की जिम्मेदारी नहीं है, यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक समाज के हर व्यक्ति में यह भावना नहीं आएगी, तब तक हम सिर्फ गिरावट की ओर ही बढ़ते रहेंगे।

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