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India's Beaches Are Disappearing! |
भारत की समुद्री तटरेखाएं धीरे-धीरे गायब होती जा रही हैं, और यह एक बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। कोस्टल इरोजन (तटीय कटाव) का यह संकट अब केवल वैज्ञानिकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आम नागरिक भी इसे महसूस करने लगे हैं। भारत के तटीय राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के वे खूबसूरत बीच, जो लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते थे, अब धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं। इसके कारण समुद्री तटों पर अब पहले की तरह स्वच्छ रेत नहीं दिखती, बल्कि बड़े-बड़े कृत्रिम पत्थर और सी वॉल्स दिखाई देने लगे हैं, जिनका उद्देश्य बची-खुची तटरेखा को किसी तरह बचाए रखना है।
इस समस्या को समझने के लिए नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च ने 1990 से 2018 तक भारत की 7,500 किमी से अधिक लंबी तटरेखा का अध्ययन किया। सैटेलाइट इमेज और ग्राउंड सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि लगभग 33.6% यानी 2,600 किमी तटरेखा धीरे-धीरे समुद्र में समा रही है। बीते कुछ दशकों में भारत नागपुर शहर के बराबर क्षेत्रफल वाली तटरेखा और समुद्री बीच गंवा चुका है। आंध्र प्रदेश में लगभग 29% तटरेखा इरोजन की चपेट में आ चुकी है, जिससे विशाखापट्टनम और काकीनाडा जैसे शहरों के समुद्री किनारे तेजी से सिमटते जा रहे हैं। यहां तक कि श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर तक समुद्र की लहरें पहुंचने का खतरा बढ़ गया है, जिससे इसरो के वैज्ञानिकों की चिंता और भी अधिक बढ़ गई है।
केरल की लगभग आधी तटरेखा समुद्र में समा रही है, जिससे अलप्पुझा, कोच्चि और पोनानी जैसे बीच खतरे में आ गए हैं। तमिलनाडु के कन्याकुमारी, चेन्नई और नागपट्टिनम जैसे शहरों की तटरेखा भी धीरे-धीरे समुद्र में समा रही है। गुजरात की स्थिति सबसे भयावह है, जहां 700 किमी से अधिक तटरेखा भारी इरोजन की चपेट में आ चुकी है। ओडिशा, महाराष्ट्र, गोवा और पश्चिम बंगाल में भी समुद्र का जलस्तर बढ़ने और कटाव के कारण तटीय इलाकों में रहने वाले लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।
समुद्री कटाव की समस्या के पीछे कई प्राकृतिक और मानवीय कारण हैं। सबसे बड़ा प्राकृतिक कारण जलवायु परिवर्तन है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। साथ ही, चक्रवात और समुद्री तूफानों की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ गई है, जिससे समुद्र की लहरें अधिक तीव्र होकर तटरेखा को नुकसान पहुंचा रही हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मानवजनित गतिविधियों के कारण हुआ है, लेकिन इसके अलावा और भी कई मानवीय गतिविधियां हैं, जो इस संकट को और अधिक गहरा रही हैं।
नदियों पर बनाए गए बड़े-बड़े बांध तटीय कटाव का एक प्रमुख कारण हैं। जब नदियों के बहाव को रोक दिया जाता है, तो उनके साथ आने वाली बालू समुद्र तक नहीं पहुंच पाती, जिससे तटीय क्षेत्रों में रेत की प्राकृतिक आपूर्ति बाधित हो जाती है। इसके अलावा, कोस्टल एरिया में तेजी से बढ़ रहा अनियंत्रित निर्माण कार्य भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। बंदरगाहों, समुद्री सड़कों, रेजॉर्ट्स और अन्य संरचनाओं के निर्माण के कारण तटीय इलाकों में संतुलन बिगड़ रहा है। सरकार द्वारा बनाए गए कोस्टल रेगुलेशन जोन (CRZ) नियमों में लगातार ढील दी जा रही है, जिससे समुद्र के किनारे तेजी से कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं।
भारत सरकार ने तटीय कटाव को रोकने के लिए कुछ उपाय किए हैं, जिनमें समुद्र किनारे ग्रोइंस (विशेष प्रकार के बैरियर), ब्रेकवाटर और सी वॉल्स (समुद्री दीवारें) का निर्माण शामिल है। हालांकि, वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि ये उपाय स्थानीय स्तर पर तो कटाव को रोक सकते हैं, लेकिन आसपास के अन्य क्षेत्रों में कटाव की समस्या को और अधिक बढ़ा सकते हैं। चेन्नई में बनाए गए समुद्री बैरियर का उदाहरण इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, जहां इन कृत्रिम संरचनाओं के कारण आसपास के इलाकों में समुद्र की लहरें और अधिक आक्रामक हो गई हैं।
तटीय कटाव के कारण भारत में न केवल पर्यटन उद्योग को नुकसान हो रहा है, बल्कि मछुआरों और तटीय इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका भी खतरे में पड़ गई है। समुद्र के पानी की लवणता (salinity) बढ़ने से खेती प्रभावित हो रही है और भूमिगत जल स्रोत भी खारे हो रहे हैं। इसके अलावा, समुद्र तटों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से जैव विविधता भी खतरे में आ गई है। कई समुद्री जीव-जंतु, विशेष रूप से कछुए और अन्य प्रजातियां, जो समुद्री तटों पर अंडे देती थीं, अब सुरक्षित प्रजनन स्थल नहीं पा रही हैं।
हालांकि, इस समस्या से निपटने के लिए कई देशों ने प्रभावी नीतियां अपनाई हैं। दक्षिण कोरिया, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों ने कोस्टल प्रोटेक्शन प्लान तैयार किया है, जिसके तहत हर प्रभावित तटीय क्षेत्र का अलग-अलग अध्ययन करके उपयुक्त समाधान खोजा गया है। भारत को भी इसी दिशा में काम करने की जरूरत है। 7,500 किमी लंबी तटरेखा के लिए एक समान नीति काम नहीं कर सकती, इसलिए हर राज्य के तटीय क्षेत्रों के अनुसार विशेष समाधान अपनाने की जरूरत है।
भारत में एकमात्र सफल उदाहरण पुडुचेरी का है, जिसने तटीय कटाव को रोकने और अपने बीच को पुनर्जीवित करने में सफलता पाई है। पुडुचेरी प्रशासन ने समुद्री संरचनाओं के निर्माण के बजाय सॉफ्ट अप्रोच अपनाया और कृत्रिम रीफ (submerged reef) लगाई, जिससे समुद्री लहरों की तीव्रता कम हुई। इसके अलावा, कटाव प्रभावित इलाकों में अन्य क्षेत्रों से रेत लाकर डाली गई, जिससे बीच को फिर से विकसित किया गया। इससे पुडुचेरी का समुद्र तट धीरे-धीरे पुनर्जीवित हो गया, और आज यह एक सफल मॉडल बन चुका है, जिसे अन्य तटीय राज्यों को अपनाने की जरूरत है।
अगर हमें अपने बीच और समुद्री तटों को बचाना है, तो हमें तत्काल प्रभावी कदम उठाने होंगे। सरकार को कठोर निर्माण के बजाय प्राकृतिक और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना होगा। साथ ही, तटीय समुदायों को भी इस समस्या के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे खुद भी इस संकट को समझें और सही समाधान की मांग करें। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत के समुद्री तटों का अस्तित्व केवल पुरानी तस्वीरों और यादों में ही रह जाएगा।