MSME Redefined : 500 करोड़ तक की कंपनियां अब MSME!

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MSME Redefined

 सरकार ने हाल ही में एमएसएमई (MSME - Micro, Small, and Medium Enterprises) की परिभाषा को पूरी तरह से बदल दिया है, जिससे भारत के लाखों छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को बड़ा लाभ मिलने वाला है। इस नई परिभाषा के तहत अब अधिक कंपनियों को एमएसएमई श्रेणी में लाया गया है, जिससे उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं और क्रेडिट सुविधाओं का अधिक लाभ मिल सकेगा। इस कदम से छोटे व्यापारियों और औद्योगिक इकाइयों को नई राहत मिलेगी, जिससे उन्हें अधिक सहूलियतों के साथ अपना व्यापार बढ़ाने का अवसर मिलेगा।

भारत में एमएसएमई क्षेत्र को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है क्योंकि यह करोड़ों लोगों को रोजगार देता है और देश के कुल उत्पादन (manufacturing) और निर्यात (export) में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस बदलाव से पहले कई कंपनियां जो पहले लार्ज स्केल इंडस्ट्री (large scale industry) में आती थीं, वे अब मीडियम एंटरप्राइज (medium enterprise) की श्रेणी में आ गई हैं, जिससे उन्हें एमएसएमई के तहत मिलने वाले लाभ प्राप्त होंगे। सरकार ने इस बदलाव को बजट में पेश किया, लेकिन इसे व्यापक चर्चा नहीं मिली, जबकि इसका प्रभाव काफी बड़ा होने वाला है।

एमएसएमई का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो आधारों पर किया जाता है - पहला, किसी उद्योग में किया गया निवेश (investment) और दूसरा, उसका सालाना टर्नओवर (annual turnover)। पहले के नियमों के अनुसार, माइक्रो इंडस्ट्री (micro industry) के लिए अधिकतम निवेश सीमा एक करोड़ रुपये थी, लेकिन अब इसे बढ़ाकर ढाई करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसी तरह, पहले माइक्रो इंडस्ट्री के लिए टर्नओवर की सीमा 5 करोड़ रुपये थी, जिसे अब 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है। स्मॉल एंटरप्राइज (small enterprise) की अधिकतम निवेश सीमा पहले 10 करोड़ रुपये थी, जिसे अब 25 करोड़ रुपये कर दिया गया है, और टर्नओवर की सीमा 50 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये कर दी गई है। वहीं, मीडियम एंटरप्राइज (medium enterprise) की निवेश सीमा को 125 करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया गया है और टर्नओवर को 500 करोड़ रुपये तक कर दिया गया है। इस बदलाव से अब कई उद्योग जो पहले लार्ज स्केल इंडस्ट्री माने जाते थे, वे अब एमएसएमई की श्रेणी में आ गए हैं।

इस बदलाव का एक प्रमुख उद्देश्य एमएसएमई को अधिक वित्तीय सहायता (financial support) और सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं तक आसान पहुंच प्रदान करना है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बताया कि एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 75 करोड़ लोग कार्यरत हैं और यह देश की अर्थव्यवस्था में 36% योगदान देता है। इतना ही नहीं, भारत का लगभग 45% निर्यात एमएसएमई क्षेत्र द्वारा किया जाता है। इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए सरकार ने कई नई योजनाओं की घोषणा की है।

सरकार ने एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी कवरेज (credit guarantee coverage) को भी बढ़ा दिया है। पहले यह कवरेज 5 करोड़ रुपये तक था, जिसे अब बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई एमएसएमई बैंक से लोन लेता है और किसी कारणवश उसे चुकाने में असमर्थ होता है, तो सरकार बैंक को यह पैसा वापस कर देगी। इस फैसले से बैंक एमएसएमई को आसानी से ऋण (loan) देने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे छोटे और मध्यम व्यवसायों को अधिक फंडिंग प्राप्त होगी।

इसके अलावा, सरकार ने एमएसएमई के लिए एक नया 'क्रेडिट कार्ड' (credit card) लॉन्च करने की भी घोषणा की है, जिससे 5 लाख रुपये तक का लोन लिया जा सकता है। हालांकि, यह सुविधा केवल उन्हीं एमएसएमई को मिलेगी जो सरकार के 'उद्यम पोर्टल' (Udyam Portal) पर पंजीकृत हैं। सरकार ने पहले चरण में 10 लाख एमएसएमई को इस योजना के तहत लाभ देने का लक्ष्य रखा है।

एमएसएमई के अंदर कई महत्वपूर्ण उद्योग आते हैं, जैसे फुटवेयर (footwear) और लेदर (leather) उद्योग। इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सरकार ने विशेष नीतियों की घोषणा की है। सरकार का अनुमान है कि इन नीतियों के जरिए 22 लाख नई नौकरियां उत्पन्न होंगी और 4 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त टर्नओवर आएगा। इसके साथ ही, फुटवेयर और लेदर उत्पादों का निर्यात भी बढ़कर 1.1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।

इसके अलावा, सरकार ने टॉय (toys) उद्योग को भी बढ़ावा देने की योजना बनाई है। इस उद्योग को मजबूत करने के लिए एक 'नेशनल एक्शन प्लान' (National Action Plan) लॉन्च किया जाएगा, जिससे भारत को टॉय निर्माण में एक वैश्विक हब (global hub) बनाया जा सके। सरकार का मकसद यह है कि चीन जैसे देशों से आयात (import) कम किया जाए और भारतीय निर्मित खिलौनों का उत्पादन और निर्यात बढ़ाया जाए। इसके लिए सरकार क्लस्टर डेवलपमेंट (cluster development), स्किल ट्रेनिंग (skill training) और मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम (manufacturing ecosystem) विकसित करने पर जोर दे रही है।

एमएसएमई क्षेत्र में सुधार से छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसायों को न केवल वित्तीय सहायता मिलेगी बल्कि वे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए और अधिक सक्षम हो जाएंगे। इस नए बदलाव के तहत, सरकार उन उद्यमियों को बढ़ावा देना चाहती है जो कम संसाधनों में भी नवाचार (innovation) और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बना सकते हैं। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में मदद करेगा बल्कि आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

कुल मिलाकर, एमएसएमई की नई परिभाषा और सरकार द्वारा उठाए गए कदम छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। इससे देश में औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा, अधिक रोजगार के अवसर सृजित होंगे और भारत का वैश्विक बाजार में स्थान और मजबूत होगा। हालांकि, इन सुधारों को जमीनी स्तर पर लागू करना और एमएसएमई तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचाना सरकार के लिए एक चुनौती होगी। लेकिन यदि यह सफल होता है, तो आने वाले वर्षों में भारतीय एमएसएमई क्षेत्र पहले से कहीं अधिक विकसित और सशक्त हो सकता है।

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