Why Terrorists Avoid China? वजह चौंकाएगी!

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Why Terrorists Avoid China?

 चीन की एंटी-टेरर रणनीति को लेकर हाल ही में एक दिलचस्प चर्चा हुई, जिसमें बताया गया कि आखिर क्यों दुनिया के अधिकतर हिस्सों में आतंकवादी हमले देखने को मिलते हैं, लेकिन चीन में यह दुर्लभ है। शिनजियांग को छोड़कर, चीन में बड़े पैमाने पर आतंकवादी गतिविधियां लगभग न के बराबर हैं। इसका सबसे बड़ा कारण चीन का अनोखा शासन मॉडल और सख्त सुरक्षा तंत्र है। आमतौर पर देखा गया है कि जहां भी कोई संघर्ष होता है, वहां अमेरिका अपने हथियारों और सैन्य ताकत के साथ हस्तक्षेप करता है, जबकि चीन वहां अपनी आर्थिक ताकत और निवेश से प्रभाव जमाने की कोशिश करता है। यही कारण है कि अमेरिका के हस्तक्षेप वाले क्षेत्रों में लंबे समय तक अशांति बनी रहती है, जबकि चीन अपने आर्थिक कूटनीति के जरिए लोगों और सरकारों का समर्थन प्राप्त कर लेता है।

चीन की सुरक्षा नीति चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है—डोमेस्टिक ऑथोरिटेरियन कंट्रोल, नॉन-इंटरवेंशनिस्ट फॉरेन पॉलिसी, इकोनॉमिक प्रैग्मेटिज्म और लिमिटेड आइडियोलॉजिकल अपील। चीन में नागरिकों की हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है, चाहे वह वेब ब्राउजिंग हो, यात्रा का डेटा हो, या फिर कोई सोशल मीडिया गतिविधि। वहाँ का सर्विलांस सिस्टम इतना मजबूत है कि लोगों की आदतों और व्यवहार को पहले से ही एनालाइज़ करके संभावित खतरे का आकलन कर लिया जाता है। स्काईनेट 2.0 नामक सर्विलांस सिस्टम के तहत पूरे चीन में 60 करोड़ से अधिक कैमरे लगाए गए हैं, जो हर व्यक्ति की गतिविधियों पर नजर रखते हैं।

चीन की इंटेलिजेंस एजेंसियां भी इस सुरक्षा ढांचे में अहम भूमिका निभाती हैं। मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी (MPS) इंटरनेट सेंसरशिप, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद निरोधक अभियानों को नियंत्रित करती है। वहीं, मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी (MSS) विदेशी खतरों और संभावित आंतरिक विद्रोह को कुचलने का काम करती है। इसके अलावा, चाइना का साइबर स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CAC) इंटरनेट पर हर गतिविधि को नियंत्रित करता है और किसी भी एंटी-गवर्नमेंट पोस्ट को तुरंत हटा दिया जाता है। चीन ने अपने नागरिकों के लिए वीपीएन सेवाओं पर भी प्रतिबंध लगा रखा है ताकि लोग बाहर की दुनिया से सेंसर-फ्री सूचना प्राप्त न कर सकें।

चीन का "सोशल क्रेडिट सिस्टम" भी टेरर गतिविधियों पर नियंत्रण का एक प्रभावी तरीका है। इस प्रणाली के तहत अच्छे नागरिकों को पुरस्कृत किया जाता है, जबकि सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों को ब्लैकलिस्ट किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति सरकार की नीतियों का विरोध करता है या एक्टिविस्ट है, तो उसे यात्रा प्रतिबंधों, नौकरी के अवसरों में कटौती और लोन न मिलने जैसी सजा भुगतनी पड़ती है। इसके अलावा, शिनजियांग क्षेत्र में लाखों उइगुर मुसलमानों के डीएनए डेटा को जबरन इकट्ठा किया गया है ताकि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

अगर वैश्विक आतंकवादी संगठनों की बात करें, तो चीन उनके प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल नहीं है। चाहे आईएसआईएस हो, अल-कायदा हो, हमास हो या हिजबुल्लाह—इन सभी संगठनों का मुख्य निशाना अमेरिका, यूरोप और इजराइल जैसे देश रहे हैं। इसका कारण यह है कि चीन इन देशों की तरह सीधे सैन्य हस्तक्षेप नहीं करता। इसके बजाय, वह कूटनीतिक संबंधों और आर्थिक निवेश के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाता है। अफगानिस्तान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जहां अमेरिका और नाटो देशों ने 20 साल तक सैन्य हस्तक्षेप किया, लेकिन अंततः तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। वहीं, चीन ने अफगानिस्तान में कोई सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया बल्कि वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर और खनन परियोजनाओं में निवेश किया, जिससे उसे स्थानीय स्तर पर स्वीकृति प्राप्त हुई।

इराक और अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में भी यही रणनीति अपनाई गई। अमेरिका और फ्रांस जहां जिहादी समूहों से निपटने के लिए सैन्य अभियानों में लगे रहे, वहीं चीन वहां की प्राकृतिक संपदाओं, तेल, यूरेनियम और व्यापार मार्गों में निवेश करता रहा। अफ्रीका में चीन का प्रभाव इतना बढ़ चुका है कि कई देश अब चीन के आर्थिक मॉडल को अपनाने लगे हैं। इस कारण वहां के जिहादी संगठनों ने भी चीन को सीधे तौर पर टारगेट नहीं किया।

हालांकि, चीन की यह रणनीति हर जगह सफल नहीं हुई है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में कई बार चाइनीज नागरिकों और प्रोजेक्ट्स पर हमले हुए हैं। इसका कारण यह है कि चीन वहां की स्थानीय आबादी को रोजगार के अवसर नहीं दे पाया और केवल सरकारी अधिकारियों से डील करके अपने प्रोजेक्ट्स चला रहा है। इस वजह से वहां चीन विरोधी भावनाएं पनपने लगी हैं। इसी तरह, कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई आतंकी संगठन, जैसे फिलीपींस का मौते ग्रुप, समय-समय पर चाइनीज नागरिकों को निशाना बनाता है।

कुल मिलाकर, चीन की एंटी-टेरर रणनीति का मूल सिद्धांत यही है कि वह आतंकवादी संगठनों को टारगेट करने के बजाय उनके क्षेत्रों में निवेश करता है और सैन्य हस्तक्षेप से बचता है। इस नीति के तहत चीन ने दुनिया के सबसे बड़े सर्विलांस नेटवर्क और कड़े सेंसरशिप कानूनों के जरिए अपने नागरिकों की हर गतिविधि पर नजर रखी है। हालांकि, यह भी संभव है कि चीन में कुछ आतंकवादी घटनाएं होती भी हों, लेकिन वहां की सरकार उन्हें मीडिया से छुपा लेती हो। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या चीन की यह रणनीति स्थायी रूप से प्रभावी रहती है या फिर उसे भी वैश्विक आतंकवाद के नए रूपों का सामना करना पड़ेगा।

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