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World's Most Corrupt Countries! |
हाल ही में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International) द्वारा जारी की गई करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (Corruption Perception Index) रिपोर्ट में यह साफ हो गया कि दुनिया के कई देश अब भी भ्रष्टाचार की समस्या से जूझ रहे हैं। इस रिपोर्ट में 180 देशों की रैंकिंग की गई है, जिसमें भारत को तीन स्थान का नुकसान हुआ है। भारत अब 96वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि पहले इसकी रैंक 93 थी। यह रिपोर्ट हर साल जारी की जाती है और इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति को उजागर करना है।
अगर इस रिपोर्ट को गहराई से समझें तो यह साफ हो जाता है कि इसमें मुख्य रूप से सरकार की पारदर्शिता (transparency), सरकारी संस्थानों की कार्यशैली, रिश्वतखोरी (bribery) और अन्य प्रशासनिक पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है। डेनमार्क इस साल भी दुनिया का सबसे ईमानदार देश बना हुआ है, जिसकी रैंकिंग नंबर 1 पर है और उसका स्कोर 90 है। इसके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, नीदरलैंड, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश टॉप 10 में शामिल हैं। इन सभी देशों में भ्रष्टाचार बहुत ही कम स्तर पर है, क्योंकि वहां की सरकारें अपने देश की नीतियों में पारदर्शिता बनाए रखती हैं।
वहीं दूसरी ओर, अगर हम दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों की बात करें तो सूची के निचले स्थानों पर अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, सीरिया, वेनेजुएला, सोमालिया और उत्तर कोरिया जैसे देश आते हैं। इन देशों में प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक अस्थिरता (political instability) के कारण भ्रष्टाचार चरम पर है। यहां पर सरकारी अधिकारियों और नेताओं द्वारा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया जाता है, जिससे आम जनता को बुरी तरह से प्रभावित होना पड़ता है।
भारत की बात करें तो देश की रैंकिंग में गिरावट चिंता का विषय है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए, जैसे कि डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना, सरकारी टेंडर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना और भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को सख्ती से लागू करना। लेकिन इसके बावजूद, भारत की रैंक में गिरावट हुई है, जो यह दर्शाता है कि अभी भी कई क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है।
भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो भूटान 18वें स्थान पर है, जो दक्षिण एशिया का सबसे कम भ्रष्टाचार वाला देश माना जाता है। चीन की रैंक 76 है, श्रीलंका 121वें स्थान पर, नेपाल 107, पाकिस्तान 135 और बांग्लादेश 151वें स्थान पर है। इससे स्पष्ट होता है कि दक्षिण एशियाई देशों में भ्रष्टाचार अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
रिपोर्ट को लेकर कई सवाल भी उठाए जा रहे हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं होती क्योंकि इसमें पश्चिमी देशों को बेहतर रैंकिंग दी जाती है। रिपोर्ट में अमेरिका 28वें स्थान पर, ब्रिटेन 20वें स्थान पर, फ्रांस 25वें स्थान पर और जर्मनी 15वें स्थान पर है। जबकि रूस को 154वें स्थान पर रखा गया है, जिससे यह संदेह होता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक कारणों से देशों की रैंकिंग प्रभावित हो रही है। अमेरिका और यूरोपीय देशों को उच्च रैंकिंग इसलिए भी मिलती है क्योंकि वे इस संस्था को सबसे ज्यादा फंडिंग देते हैं।
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए भारत में कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी भी सरकारी तंत्र में रिश्वतखोरी और लालफीताशाही (red tapeism) की समस्या बनी हुई है। जब तक सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाएगी और प्रशासनिक सुधार नहीं होंगे, तब तक भारत को इस सूची में ऊपर आने में मुश्किल होगी।
भारत में 2005 से लेकर अब तक की करप्शन परसेप्शन इंडेक्स रैंकिंग को देखें तो 2006 में भारत की स्थिति बेहतर थी, जब देश 72वें स्थान पर था। लेकिन 2011 में भारत की रैंकिंग सबसे खराब रही, जब देश 95वें स्थान पर पहुंच गया था। 2015 में भारत ने 76वीं रैंक हासिल की थी, जो अब तक की सबसे अच्छी स्थिति थी। लेकिन इसके बाद स्थिति बिगड़ती चली गई और 2024 में भारत 96वें स्थान पर पहुंच गया।
भ्रष्टाचार का प्रभाव केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका असर पर्यावरण (environment) और समाज पर भी पड़ता है। जहां पर भ्रष्टाचार अधिक होता है, वहां सार्वजनिक धन का दुरुपयोग बढ़ता है, जिससे देश की विकास दर प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन (climate change) को लेकर जो फंड सरकारों को दिया जाता है, वह अगर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है, तो पर्यावरण की स्थिति और भी खराब हो जाती है। अमेरिका इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां पर बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण पर्यावरण की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
ऐसे में अगर भारत को अपनी रैंकिंग में सुधार करना है तो सरकार को कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। सरकारी तंत्र में पारदर्शिता बढ़ानी होगी, सरकारी नीतियों को आम जनता के हित में बनाना होगा और भ्रष्टाचारियों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी। जब तक सरकार और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर इस समस्या का हल नहीं निकालेंगे, तब तक भारत की स्थिति में सुधार नहीं होगा।
अंत में, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट एक संकेत देती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अभी भी जारी है और दुनिया के कई देशों को इसमें सुधार करने की जरूरत है। भारत भी उन देशों में शामिल है, जिन्हें अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को बेहतर बनाना होगा ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके और देश को विश्व मंच पर एक बेहतर स्थान दिलाया जा सके।